सुबह के पांच हुआ चाहते हैं
अपने फ्लेट की बाल्कनी में बैठा
असीम आकाश को निहारता
आव्हान कर रहा हूँ मैं
माँ सरस्वती का
आओ
लिखवाओ मुझसे कुछ अच्छा , कुछ सच्चा
माँ
देखे हैं मैंने बहुत से नजारे
दुख के, आंसुओं के,रोग के,शोक के
अवसाद, एकाकीपन की अंधेरी गलियों से भी गुजरा हूँ मैं
अकाल मौत को भी करीब से देखा है मैने
मानव की पशुता, क्रूरता, हिर्दयहीनता से भी वाकिफ़ हूँ मैं
क्या उनके बारे मे लिखूँ ?
मगर क्यों ?
मैने प्यार का उजाला भी तो देखा है
उसकी रेशमी गरमाहट को महसूस किया है मैने
माँ के,बहिन के,पत्नी के त्याग-तपस्या के
गंगाजल मे नहाया है मेरा अंतःकरण
बचपन की खट्टी-मीठी यादें, गुरुजनों की सीखें
भूले नहीं भूलती
अंधेरे में निठल्ले न बैठकर
निस्वार्थ सेवा के दीप जलाने वाले
लोगों को भी देखा है मैने
माँ,क्यों न लिखूँ उनके बारे मे ?
मत पूछ मुझसे, ओ बेटे मेरे
जो कुछ देखा है, दिल से महसूस किया है
लिख, बेटे लिख !
Radhakrishna Arora
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