बैठा जो सारे रण हारे,
बस बासठ पर इतराए है।
भूल गया हम भारत हैं,
कारगिल, इकहत्तर दोहराए हैं।
सभी पड़ोसी विमुख हुए,
बस पाक को बरगलाए है।
बन गीदड़ दे भभकी,
वह सियार चाईना कहलाये है।।
छुटभैयों को धौंस दिखा,
समझे जग में धाक जमाये हैं।
इस सदी के नायक हम हैं,
किसको वह आंख दिखाये है।
पड़े हैं उल्टे दांव सभी,
तभी तो खूब खिजियाये है।
बन गीदड़ दे भभकी,
वह सियार चाईना कहलाये है।।
हो विस्तारवाद या साउथ चाईना सी,
जग के देश नजर गड़ाये हैं।
होगी डिप्लोमेसी उसकी सारी फेल,
इतनी जग में हम पहुंच बनाए हैं।
जंग जुबानी क्या होगा,
इससे हम कब घबराए हैं।
बन गीदड़ दे भभकी,
वह सियार चाईना कहलाये है।।
चल गया पता डोकलाम में चारफूटिये,
यदि पहले जंग चलाये हैं।
हुआ तिब्बत मुक्त, समझो विभीषण,
दलाई लामा बन धरा पर फिर आये हैं।
क्योंकि वंशज हैं हम उसी रघु के,
जो चढ़ लंका इतिहास बनाए हैं।
कीड़े-मकोड़े खाने वाले,
अब खाने खयाली पुलाव आए हैं।
बन गीदड़ दे भभकी,
वह सियार चाईना कहलाये है।।
युद्ध और ट्रेड बहिष्कार रूपी,
दोहरी मार की नीति बनाएं हैं।
होगी अर्थतंत्र जमीदोज, ज्यादा,
कहीं जितनी आस लगाए है।
है दुनिया जिससे खफा-खफा,
कूटनीति में जो अंडा पाए है।
बन गीदड़ दे भभकी,
वह सियार चाईना कहलाये है।।
बन गीदड़ दे भभकी,
वह सियार चाईना कहलाये है।।
---रघु आर्यन
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