क्यूँ मुझ लड़की पर ही तुम
इज्जत का बोझा डाल रहे।
क्यूँ लड़कों को नहीं सिखाते,
देखो तुम जैसे सबकी बहना,
तेरी बहना वैसे देखी जायेगी।।
ये इज्जत का रोना धोना,
क्यूँ मुझ पर थोपा जाता है।
हम बात करें या प्यार करें,
दो चार जनों से मुलाकात करे।
बस इतने में ही दिख जाए,
तुमको मुझमें ढेरों कमियां।।
पर तुम लड़कों से क्यूँ न पूछो,
वो कितनी इज्जत तार किए हैं।
क्या तुम इसको बतलाओगे,
शेखी बघारते लड़के आपस में,
कहते तेरी बस दो है
मेरी तो चार ।
फिर वही इक लड़की को क्यूँ कहें,
उस बदचलन के हैं तीन यार।।
आखिर ऐसी घटिया सोच,
उन लड़को में कैसे आई।
ये दोष तुम्हारा है,
बोल रहे वो,
जो बचपन से तुमने है सिखलाई।।
क्यों सिखलाते मुझको तुम,
ये बर्तन चौके काम मेरे हैं,
वो सब्जी लाना उसका है।
तुम कैद घरों में करके मुझको,
क्यों इज्जत का नाम दिए हो।
निकल बेटियां देखो,
अब छू रही आसमान हैं।
फिर क्यूँ पड़े हो कहने में,
बस लड़के हमारी शान हैं।।
तुम छोड़ो सब ये
दकियानूसी बातें,
मत जोड़ो लिंग भेद को,
कर्म भेद में लाके।
तुम देखो लड़को को,
रेस्तराओं में बना रहे
कैसे खाना हैं।
फिर 'प्रतिभा' को देखो
कैसे एक लड़की होके
राष्ट्र 'पति' धर्म
निभाये जाना है।।
क्या तुम बता पाओगे!
है ऐसा कोई काम,
जो हम बेटियां न कर पाएं !
बोलो बताओ..
ये इज्जत का की आड़ में,
कब तलक पुरुषवाद को सींचा जाये !!
___रघु आर्यन
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