Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं कुरुक्षेत्र से गीता निकालने वाला हूँ

 

 

गिनूं शेर दांत मैं वो
भारत मां का बंदा हूँ ।
लिपट तिरंगा उड़ जाऊँ,
वो जांबाज परिंदा हूँ ॥

 

आ जाओ यदि प्यार मांगने,
मैं हिन्द चीन,
मिल जाने की बात करुंगा ।
पर टकराना मत मुझसे तुम,
मैं दुश्मन घर को,
बांग्लादेश बना दुंगा ॥

 

मैं शांति दूत का रक्षक भी हूँ ।
मै युद्ध भूमि का पूजक भी हूँ ॥

 

मैं हल्दीघाटी से,
राणा निकालता हूँ,
अंग्रेजों से लड़,
गांधी, बोस निकालता हूँ ।
जीत कलिंग मैं,
अशोक बदलने वाला हूँ,
मैं कुरुक्षेत्र से,
गीता निकालने वाला हूँ ।

 

आंख दिखाना तुम औरों को,
जो कठपुतली बन खेल रहे ।
क्या टकराओगे मुझसे तुम,
जन गण मन का क़त्ल कर,
हो बस अब चिंघाड़ रहे ।।

 

क्या टकराओगे मुझसे तुम,
दो धुर की दुनिया में भी,
मैं निरपेक्षों का नेता था ।
फिर भी रण में हूं पला बढ़ा,
मैं वो गण तंत्र का शेर हूँ,
जो अब हैं हम दहाड़ रहे ॥

 

 

गिनूं शेर दांत मैं वो,
भारत मां का बंदा हूँ ।
लिपट तिरंगा उड़ जाऊँ वो
जांबाज परिंदा हूँ ॥

 

 

रघु आर्यन

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