Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आतंक छाया है समाज में

 


आतंक छाया है समाज में,
अंतर्द्वंद है ह्रदय में,
क्या है जीवन
जानना चाहते है सभी..
विस्फोटों और धमाकों
के साए में
जीता हुआ आदमी…
अपने ही कोटर में
दुबक कर,
और
सहम कर,
भेड़ियों से,
अपने प्राणों की भीख
माँगता हुआ,
मुझे लगता है
एक मेमने की तरह….
क्या यही
मानव समाज के,
सभ्यता के उत्कर्ष की
पराकाष्ठा है….?

 

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