Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ग़ुम होता चेहरा

 

ग़ुम होता चेहरा ( एक आम आदमी का ..!)
चारो तरफ की भीड़ में,
अक्सर ही एक चेहरा
जाना पहचाना सा लगता है
और ,
जब तक मैं उसके पास जा पाता
वह ग़ुम हो जाता है….
चारो तरफ की भीड़ में,
अक्सर ही एक चेहरा
जाना पहचाना सा लगता है
और ,
जब तक मैं उसके पास जा पाता
वह ग़ुम हो जाता है….
न जाने क्यों,
वह चेहरा
हर बार खीचता है मुझे
अपनी तरफ ….
उसकी आँखों की बेचारगी
अहसास कराती है मुझे
अस्तित्व के लिए संघर्षरत लोगों के,
न ख़त्म होने वाली बेचारगी का…
उसके चेहरे का पीलापन..
न जाने क्यों
खींच ले जाता है मुझे
श्मशान की तरफ…
जहां पर अनगिनत लाशों के ढेर की सफ़ेदी,
और,
उनको कंधा देने वालों के चेहरे का पीलापन
अंतर स्पष्ट करते हैं ,
जिन्दगी और जिन्दा होने के बीच का-
कभी कभी तो मैं स्वयं को
उसी चेहरे में फिट पाता हूँ,
और,
अक्सर ही
आस पास के,
सभी जाने पहचाने चेहरे
एक एक कर
उसी चेहरे में
मिलते नज़र आते हैं …..

 

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