Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फिर भी?

 

 

न ग़म है न ख़ुशी न कोई बात ख़ास है

फिर भी न जाने क्यों मेरा सबकुछ उदास है

 


न खत मिला किसी का न आयी कोई खबर

न है कोई पैगाम मेरे यार के लैब पर

न इंतजार है कहीं न कोई आस है

फिर भी न जाने क्यों.......

 


मुद्दत हुई है यूँ ही अकेले पड़े हुए

देखा जहाँ को दूर से हमने खड़े हुए

यह आज ही नहीं कि नहीं कोई पास है

फिर भी न जाने क्यों...........

 


दामन में मेरे दिल के ये टुकड़े हैं पुराने

आती रहीं हैं याद भी आंखों को रुलाने

आंसू भी नहीं अब न रही कुछ तलाश है

फिर भी न जाने क्यों............

 

 

 

 

Raj Hans Gupta

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