Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहारों मुस्कुरा दो तुम, मुझे भी मुस्कुराने दो

 

बहारों मुस्कुरा दो तुम, मुझे भी मुस्कुराने दो।
सुबह है वादियोंमे गुम, सबा को गुनगुनाने दो।

 

कहा था पेड पौधोंने, झुलसती साँस को भरकर,
अभी तो हम अकेले हैं, जरा सावन को आने दो।

 

बरसती हैं घटाओंसे, खुद़ा की नेअमते बर तर,
कहीं हैं ईद की खुशियाँ, कहीं दीपक जलाने दो।

 

गुलोंका मर्तबा करना, हिफ़ाज़त हो शरीफोंकी,
उन्हेभी हक़ है जीने का, उन्हे गुलशन सजाने दो।

 

मुकद्दर साथ है उनके, जिन्हे सचपर भरोसा है,
मिटाकर फासले दिलके, दिलोंसे दिल मिलाने दो।

 

 

 

- राज पठाण.

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