तुम्हे पाकर तुम्हे खोना, जमाने याद आते हैं
हमारी बदह़वासी के, फसाने याद आते है.....
नशीली उन निगाहोंमे, बहारे ही बहारें थी
उन्ही बेबांक आँखोके, खजाने याद आते हैं....
समाँ था क्या सुहाना वो, फिजाओंके नशेमन में
तुम्हे एहसास देने के, बहाने याद आते हैं......
पिरोये थे सुनाये थे, हजारों गीत गाये थे
उसी ख्वाबों कि दुनियाके, तराने याद आते हैं...
भुलायें भी उन्हे कैसे, खयालों में बसेरा है
वही रातें वही दिन क्यौं, पुराने याद आते हैं.....
- राज.
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY