चेहरे पर मुस्कान लिए,
निरंतर वो चलता है;
जहाँ भी जाऊ साथ चले वो,
अपनापन सा लगता है.
देखूँ जब खिड़की से, तो.....
अँधियारी रातो में वो,
उजियारा सा करता है;
ठंडी-ठंडी किरणों से,
दिल में उमंग भरता है.
देखूँ जब खिड़की से, तो.....
धरती से दूरी पर भी,
लहरो को उठाता है;
ठंडी पवन के झोंको से,
सब के मन को भाता है.
देखूँ जब खिड़की से, तो.....
आधा होता पूरा होता,
आँख मिचोली करता है;
रूप निराले भर कर,
नयी शरारत करता है.
देखूँ जब खिड़की से, तो.....
बूँद ओस की मोती करता,
मिट्टी को चाँदी करता है;
बेरंग नीर का रूप बदलकर,
आँखों को शीतल करता है.
देखूँ जब खिड़की से, तो.....
गोल मटोल मुस्कान बिखेरे,
बच्चो को मामा दिखता है;
जहाँ भी जाऊ साथ चले वो,
अपनापन सा लगता है.
देखूँ जब खिड़की से, तो.....
By - Raj Kumar
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