Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देखूँ जब खिड़की से, तो चंदा मामा दिखता है.....

 

चेहरे पर मुस्कान लिए,

निरंतर वो चलता है;

जहाँ भी जाऊ साथ चले वो,

अपनापन सा लगता है.

देखूँ जब खिड़की से, तो.....

 


अँधियारी रातो में वो,

उजियारा सा करता है;

ठंडी-ठंडी किरणों से,

दिल में उमंग भरता है.

देखूँ जब खिड़की से, तो.....

 


धरती से दूरी पर भी,

लहरो को उठाता है;

ठंडी पवन के झोंको से,

सब के मन को भाता है.

देखूँ जब खिड़की से, तो.....

 


आधा होता पूरा होता,

आँख मिचोली करता है;

रूप निराले भर कर,

नयी शरारत करता है.

देखूँ जब खिड़की से, तो.....

 


बूँद ओस की मोती करता,

मिट्टी को चाँदी करता है;

बेरंग नीर का रूप बदलकर,

आँखों को शीतल करता है.

देखूँ जब खिड़की से, तो.....

 


गोल मटोल मुस्कान बिखेरे,

बच्चो को मामा दिखता है;

जहाँ भी जाऊ साथ चले वो,

अपनापन सा लगता है.

देखूँ जब खिड़की से, तो.....

 

 

By - Raj Kumar

 

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