Rajashree Tirvir Mokashi
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सुमेरु गीत
1222 1222 122
जगत की ज्योति जब, तक ये जलेगी,
पतिंगा प्राण का, मरता रहेगा |
न लेगी मौत सिर, पर दोष अपने,
बहाना इस तरह, चलता रहेगा ||
खिला जो आज है, कल को झरेगा,
शिखा से फूल हर, कोई गिरेगा |
कली का दर्प यूँ, झरता रहेगा,
पतिंगा प्राण का, मरता रहेगा ||
सभी वैभव दिखावा, है हमारा,
न कोई है हमारा, ना तुम्हारा |
दिखावा धूल में, मिलता रहेगा,
पतिंगा प्राण का, जलता रहेगा ||
समय थोड़ा बचा, कुछ काम कर लो,
करो ऐसा जहाँ में, नाम कर लो |
नहीं तो वक्त ये, टलता रहेगा,
पतिंगा प्राण का जलता रहेगा |
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