Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आखरी बार

 

आखरी बार कब ये दिल मुस्कुराया था,
तस्वीर उसकी, सामने जब झलकी थी|
आखरी बार कब ये मन मेरा झूमा था,
आवाज़ उसकी , कानो में जब गूंजी थी|
आखरी बार कब मैं रात ना सो पाया था,
सामने खुदा मेरा , जब खुद आ बैठा था|
आखरी बार कब इस बदन में बिजली दौड़ी थी,
जब प्यार से मैंने उसकी कलाई पकड़ी थी|
आखरी बार कब वक़्त थमा था,
अलविदा जब उन्होंने हमसे कहा था|
अब तो उसके बिन , ना दिन का पता है ना रात का,
फिर भी अगर वो खुश हैं ,
तो गम नही है हमे किसी बात का,
बस अब इंतज़ार है तो सिर्फ ,
अपने आखरी बार का|

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