गुलशन में नहीं ख़ार हो,ऐसा नहीं होता
दुश्मन न कोई यार हो, ऐसा नहीं होता
कैसा भी हो कोई मगर, उस का भी जहां में
कोई न तलबगार हो, ऐसा नहीं होता
इंसां जो कभी आ न सके काम किसी के
इतना कोई लाचार हो, ऐसा नहीं होता
बातों में तो जान अपनी लुटा सकता है, लेकिन
मरने को भी तैयार हो, ऐसा नहीं होता
कितना भी दुखी क्यों ना हो इस दुनिया में, कोई
जीने से वह बेज़ार हो, ऐसा नहीं होता
महफ़िल में बहुत होते हैं दुश्मन तो, मगर ‘राज़’
कोई भी न दिलदार हो, ऐसा नहीं होता
राज़दान ‘राज़’
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