क्या खूब है उनका ये अंदाज-ए-भ्रष्टाचारी
दीमक की तरह चाटते रहते है वो फंड सरकारी
पहुंच चुके है वो भौतिक समृद्धि के चरम पर
नापते नहीं पर अपनी चारित्रीक पतन की गहराई
ठूंस लिया है खजाने में सात पुश्तों का रसद
जनता गरीब भूख से तड़प-तड़प के है जान गंवाई
फैलाकर अंधकार जन-जन के जीवन में
जश्न मनाते संतरंगी आभा में खूद जीवन बिताई
प्यास होंठो पर जम गयी पीने को जल मयस्सर नहीं
खाए-अघाए लोगों ने टकरा के जाम छलकायी
बेरोजगारों को नौकरी सरकार कराती नहीं मुहैया
भत्ता देकर बेरोजगारों की फौज को है आलसी बनायी
कौन कहता है खत्म हो गया जंमीदारी प्रथा देश में
मंत्रियों ने देश में अपनी-अपनी है जमींदारी बसायी
राजीव
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