Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गौरेया का घोंसला

 

बहुत दिनों से मुझे अपने घर में गौरेया नजर नहीं आती. बहुत दिनों बाद हाल में मैंने एक गौरेया को अपने कमरे के रौषनदान पर घोंसला बनाते देखा. मैं खूष हुआ, चलो अब गौरेया की चहचहाट तो सून पाउंगा.
कान तरस गयी थी गौरेया की आवाज सूने हुए. दरअसल गौरेया मुझे इसलिए प्यारी लगती है क्योंकि मैंने अपना बचपन गौरेया के साथ खेलने में बिताया था. मैंने कलम के सहारे जब भी अतीत को कागजों पर लाया तो अतीत गौरेया के शक्ल में ही कागजों पर उतरा.


बच्चों को पहले जब मैं गौरेया के संबंध में बतलाता, तो बच्चे गौरेया को दिखाने की बात करते, मैं मन ही मन अफसोस करता कि काष सचमूच का गौरेया मैं बच्चों को दिखा पाता. अब मेरी मनोकामना पूरी हो गयी थी, गौरेया मेरे घर के एक कमरे के रौषनदान पर अपना घोंसला बना रही थी. मैं और मेरे दोनों बच्चे सीढ़ी से चढ़कर गौरेया के अनुपस्थिति में छोटे-छोटे नन्हें तिनकों को गौरेया के बनते हुए घोसले के इिर्द-गिर्द रख दिया, गौरेया खूष नजर आने लगी और जोर-जोर से चहकने लगी, तब मैंने बच्चों को गौरेया साक्षात दिखलाया, जो अब मेरे घर के एक कमरे के रौषनदान पर रहती है.


अगर मैं विचारहीन हेाता तो घर में गंदगी फैलाने के नाम पर सफाई अभियान चलाता और गौरेया के बनते घोंसले को उठा फेंकता, वैसे में गौरेया क्या करती ? कहीं और चली जाती, फिर से तिनका-तिनका इकट्ठा करती, घोंसला नया बनाती, परंतु मुझसे यह न हो सका. अरे थोड़ा-मोड़ा गंदगी तो बच्चे भी घर में फैलाते है उसे क्या मैं घर से निकाल देता हॅंू ? तो फिर
गौरेया को मैं क्यों निकालता.


लिहाजा गौरेया मेरे घर में मेरे पारिवारिक सदस्य के रूप में रहने लगी, चीं-चीं-चीं करने लगी. मैं जब यह लिख रहा हॅूं, मेरे बच्चे गौरेया के साथ खेल रहे है, नन्ही गौरेया कभी अलमारी के उपर बैठती है, कभी बंद पंखें के डैने पर और रात में रौषनदान में सोती है. बच्चे मोबाइल, लैपटाॅप, आईपौड़, टीवी के वजाए गौरेया से हिलमिल गए है.


अगर हम देखें तो हमलोगों की सारी समस्या का हल गौरेया और मेरी कहानी में नीहित है. थोड़ी सी जगह अगर हम गौरेया या गरीब को देते चले, तो वो भी बस जाएगा और समस्याएं खत्म होने लगेगी परंतु अफसोस कि हम ऐसा नहीं करते.

 

 

राजीव आनंद

 

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