जिंदगी के विस्तर पर
करवटें बदलती रही
और सूबह होते-होते
दम तोड़ दी
सपनों के तकिए पर
बिखरी थी लहू की कुछ बूदें
राजीव आनंद
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जिंदगी के विस्तर पर
करवटें बदलती रही
और सूबह होते-होते
दम तोड़ दी
सपनों के तकिए पर
बिखरी थी लहू की कुछ बूदें
राजीव आनंद
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