Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा घर

 

आंखे आज भी तकती है
उस तवील राह को
जिस पर चलकर मैं
अपने घर को छोड़ आया था
नजरों की हदों के पार
बादलों के बीच
नजर आता है अभी भी एक
दरवाजा
जो कभी खूला रहता था
पर अब बंद है
प्रतीत होता मेरा भ्रम है

 

 

राजीव आनंद

 

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