गांवनुमा शहर में नदी के किनारे एक प्राचीन पीपल का पेड़. पतझड़ में जब इस पेड़ के पत्ते झड़ जाते तो इसकी विशालता देखते बनती थी और फिर जब पृथ्वी से दाना-पानी लेकर नयी-नयी पत्तियां लगती तो मालूम देता कि एक पूरा बागीचा हरा हो गया हो.
पथिक नदी पार करके इस प्राचीन पीपल के पेड़ की शीतल छाया में थोड़ी देर सुस्ता लेते. चना-चबेना खाकर नदी के नीले जल से प्यास बूझाकर आगे का सफर तय करते. दूर-दूर से लोग शाम को नदी किनारे घूमने आते, पेड़ की छाया में बैठते. अच्छी खासी भीड़ हो जाती थी उस पेड़ के इर्द-गिर्द. झूंड़ के झंूड़ लोग पेड़ की छाया में बैठे गप्पें हांकते रहते. सैकड़ों वर्षों से खड़ा यह विशालकाय पीपल का पेड़ कितने ही वर-वधू पूजा, शव यात्रा, आत्महत्या, हत्या, प्रेमालाप, घर से भागे जोड़े की शरण देने का साक्षी रहा था.
मौसम चाहे जाड़े का हो, गर्मी का या बरसात का, आदमी, औरत, बच्चे, गाय, भैंस, बकरियों के छोटे-छोटे झूंड़ हमेशा ही पेड़ के नीचे बैठे मिल जाया करते थे. इसके अलावे कोई पेड़ की छाल औषधि बनाने के लिए ले जाता, कोई उसकी पत्तियां. देता ही आया था वह विशाल पीपल का पेड़ सभी को कुछ न कुछ, चाहे वह छाया हो, छाल हो या पत्तियां हो. नदी किनारे गाय, बैल, बकरी, भैंस चराने वालों का तो मानो पेड़ के नीचे ही रैनबसेरा था. बिरजुआ अपनी गाय-भैंस को चरने छोड़कर पेड़ के नीचे बोरा बिछाता और वहीं लेट जाया करता था. घने पेड़ के पत्तों से छन-छन कर आती स्वस्थ्यबर्द्धक हवा बिरजुआ में जैसे प्राण वायु भर देती थी. गरीबी की मार सहते हुए भी वह हटठा-कटठा था उसे पेड़ के नीचे सूखी रोटी और प्याज से ही सभी बिटामीन-मिनरल-वसा आदि मिल जाया करता था.
वैशाख की दोपहरी में जब चारों ओर अग्नि वर्षा होने लगती, घर-घर जाकर काम करने वाली औरतों, चरवाहों, पथिकों की जान इसी पेड़ की छाया में बचती. इस विशाल पेड़ की जड़े जमीन पर मानों बिछ सी गयी थी. इसकी चैड़ी-चैड़ी डालें जमीन से इतनी नजदीक आ गयी थी कि बच्चे उसपर दौड़ा करते थे. मच्छरदानी के टूकड़े से नदी में मछलियां पकड़ते कई युवाओं की भी शरणास्थली यही पेड़ थी. जमीन में फैले इसकी जड़ों के बीच में पत्ते-पलाहों की आग जलाकर युवक लोग मछलियां पका लेते और महुआ के फलों से बनी दारू को पके मछली के साथ बड़े चाव से पीते. शहर में ऐसा कोई भी आदमी हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई नही होगा जो इस पेड़ की छाया का आनंद न लिया हो.
कुछ महिलाओं और बच्चे जो अपनी मांओं के साथ पूजा-अर्चना करने पेड़ के पास आते थे, उनकी मान्यता थी कि इस पेड़ को पूजते हुए अगर कोई मन्नौती मांगी जाए तो अवश्य पूरी होती है परंतु मन्नौती पूरी होने पर एक शुद्ध घीव का दिया जलाना पड़ता था और कुछ फल चढ़ाने पड़ते थे. ऐसा नहीं करने पर पेड़ नाराज हो जाते थे. इस मान्यता के कारण लगभग प्रतिदिन पेड़ के अनगिनत फैले जड़ों के बीच कहीं एक घीव का दिया जलता रहता था और कुछ फल वगैरह रखे पाये जाते थे जिसे चिड़िया, पशु बड़े चाव से खा जाते थे.
रजनीगंधा जब छोटी थी तब से अपनी मां के साथ पेड़ की पूजा के लिए जाया करती थी, पता नहीं क्या-क्या उस पेड़ से मांगती रहती थी और पूरा होने पर वो बताती भी थी. अब वो जवान हो गयी थी, उसका ब्याह हो चुका था और पहली बार जब ससुराल से अपने नेहर लौटी तो अपने पति को लेकर पेड़ से आर्शीवाद दिलवाने ले गयी थी. उसका पति शेखर जो सीविल इंजीनियर था पेड़ की विशालता और प्राचीनता दोनों देखकर आश्चर्यचकित रह गया था. श्रद्धा से उसके सर पेड़ के सम्मुख झूक गए थे. रजनीगंधा बताती थी कि पेड़ से आर्शीवाद लेने के बाद ही उसके पति को कंपनी ने नाइजीरिया नामक अफ्रीकी देश भेजा था. काफी नाम और प्रसिद्धि हासिल किया था उसके पति शेखर ने पेड़ से आर्शीवाद लेने के बाद. एक अन्य महिला डेजी जिसे शिक्षित होने का बड़ा घंमड़ था जब ब्याह के बाद आयी तो ससुराल वाले उसे भी पेड़ के पास ले गए थे परंतु शिक्षा के घंमड़ में उसने पेड़ की पूजा करने से इंकार कर दिया था. पता नहीं कैसी शिक्षा हासिल की थी डेजी ने ? छोटे वर्गों में ही तो यह शिक्षा दी जाती है कि पेड-पौधे भी जीवित है तो फिर पेड़ की पूजा क्यों नहीं की जा सकती ? जब लोग नीर्जिव पत्थर पूरे विश्वास के साथ पूज सकते है तो जीवित पेड़ को क्यों नहीं पूजा जा सकता, ऐसा करने में शिक्षा कहां आड़े आती है परंतु डेजी के लिए शिक्षा आड़े आती थी इसलिए उसने पेड़ की पूजा करने से इंकार कर दिया था. यद्यपि कुछ वर्षों के बाद डेजी को यह पता चल गया था कि उसने पेड़ की पूजा न कर गलती की थी. डेजी बाद के वर्षों में अपनी गलती सुधारी रही थी.
एक दिन पूरे शहर में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गयी कि एक भू-माफिया ने पेड़ सहित नदी के मुहाने से सटे जमीन को खरीद लिया है और वह पेड़ को काट कर हटाना चाहता है जिससे वह वहां आलीशान अपार्टमेंट बना सके. सून कर शहर के तमाम लोगों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे थे. अखबारों तक में इस खबर का छापा गया था. कोई कहता पेड़ को बिना काटे भी तो अपार्टमेंट बनाया जा सकता है तो कोई इसका जवाब देता कि इतने बड़े एरिया में फैला हुआ पेड़ को रूपए देकर खरीदने वाला भू-माफिया क्यों छोड़ेगा, उसे तो पाई-पाई वसूल करनी होगी. सबसे ज्यादा आहत थी महिलाएं जिनकी धार्मिक भावना को ठेस लगी थी. कई महिलाएं अपना उद्गार यह कह कर व्यक्त कर रही थी कि बर्बाद हो जाएगा वो भू-माफिया जो उस पीपल के पेड़ को काटेगा तो कोई महिला सीधा श्राप दे रही थी उस भू-माफिया को कि उसे शहर में कहीं और जमीन नहीं मिला खरीदने को, उसे कीड़े पड़ेंगे. एक पर्यावरणविद् नेत्री मंजूलता ने अपनी प्रतिक्रिया यह कहते हुए व्यक्त की कि सैकड़ों वर्षों से बगीचे की तरह फलता-फूलता हुआ पेड़ को काटना पर्यावरण की दृष्टिकोण से तो गलत है ही, भावनात्मक रूप से भी गलत है. सरकार और वन विभाग को चाहिए कि भू-माफिया को रोके. अरे पैसे वालों के लिए क्या समस्या, यहां नही ंतो कहीं और जमीन मिल जाएगा. पेड़ काटकर अपार्टमेंट बनाने की क्या आवश्यकता है ?
भू-माफिया दंबग किस्म का पैसे वाला व्यक्ति था. उसे सिर्फ पैसे से मतलब था, पर्यावरण, धार्मिक विश्वास या भावना का कोई मोल नहीं था उसके पास. वह सिर्फ इतना जानता था कि उसने रूपए से जमीन और पेड़ खरीदा था और अपार्टमेंट बनाकर कर नौ का नब्बे उसे बनाना था. शहर के आम लोगों द्वारा जो भी कोशिशें उस पेड़ को बचाने की चल रही थी, सभी कोशिशों को भू-माफिया ने संबंधित विभाग, पुलिस और असामाजिक तत्वों को पैसे खिलाकर नाकाम कर दिया था. प्रशासन, वन विभाग, नेतागण सभी चुप्पी साध लिए थे.
इस तरह वो दिन भी आ गया जब उस भू-माफिया ने दर्जनों पेड़ काटने में दक्ष लोगों को लेकर आ गया और पेड़ की कटाई शुरू हो गयी. पेड़ की विशालता इतनी थी कि पूरे चालीस दिनों में पेड़ की हत्या की जा सकी थी, पूरे पेड़ के मलबे को साफ करते-करते तीन महीने बीत गये थे. जब पेड़ काटा जा रहा था उस दरम्यान कितने लोगों, महिलाओं यहां तक कि पशु-पक्षियों की नींद हराम हो गयी थी. एक-एक विशालकाय डाली जब कट कर जमींदोज होती तो लगता था मानो धरती भी चित्कार कर उठी हो. गाय, बैल, भैंस, बकरी, पशु-पक्षियों के बीच कोहराम सा मच गया था. शहर के लोग, महिलाएं, बच्चे दिन-दिन भर खड़े होकर एक टक उनके प्रिय पेड़ को तिल-तिल कटते देख रहे थे.
मधुमति नामक एक अति भावूक महिला तो जिस दिन पेड़ को पहली कूल्हाडी लगी उसी दिन छाती के दर्द से जो बीमार पड़ी कि लाख कोशिशो के बावजूद वो बच न सकी. पूरे पेड़ के कटने तक भी वह इंतजार न कर सकी, पेड़ के आधा कटते-कटते ही मधुमति ने अपने प्राण गंवा दिए. डाक्टरों ने ईसीजी, एक्सरे, सीटीस्केन सब कुछ कर के देख चुके थे. मशीनें मधुमति के मर्ज को नहीं पकड़ पायी थी. उसके छाती में उठी पीड़ा ईसीजी में कैद न हो सकी. भावनात्मक पीड़ा को क्या कोई मशीन अपने स्क्रीन पर दर्शा सकता है ? और मधुमति मर गयी. कई युवा और व्यस्क लोग भी इतने आह्त हुए थे कि एक दिन अपने सफेद रंग के बेलोरो गाड़ी पर पेड़ के समीप आए भू-माफिया पर सामूहिक रूप से हमला बोल दिया था, उस दिन तो पेड़ काटने वालों की मदद से बचकर भू-माफिया भागने में कामयाब हो गया था लेकिन उस दिन के बाद बिना पुलिस दस्ते के वो कभी भी पेड़ के समीप नहीं आया था. पुलिस हमला करने वाले समूह में से कई लोगों को नामजद कर जेल में डाल दी थी. पेड़ काटने तक उनलोगों को येन-केन-प्राक्रेन अंदर ही रखा गया था.
चालीस दिन बाद पेड़ पूरी तरह से कट चुका था, जमीन भी समतल कर दी गयी थी. वो जगह जहां कभी पेड़ हुआ करता था एक अजीब मनहूसियत से श्रापित सा प्रतीत होता था. रौनक नहीं थी वहां, श्मशान सी शांति छायी रहती थी. लेकिन उस भू-माफिया को इससे क्या फर्क पड़ता था, उसे तो अपार्टमेंट खड़ा करना था और पैसे कमाने थे. पता नहीं पैसे की लालच में लोग अंधा क्यों हो जाते हैं ? अपार्टमेंट बनना शुरू हो गया था. सैकड़ों मिस्त्री, मजदूरों और इंजीनियरों को लगा दिया गया था. नदी का किनारा होने के कारण पहले तो बड़े-बड़े पीलर दिए जाने लगे. महीना भी नहीं बिता था कि पीलर ढालने के दौरान एक इंजीनियर और दो राज मिस्त्री की जान मचान के टूटने से नीचे गिर जाने के कारण हो गयी थी.
लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त करना शुरू कर दिया था. रामधनी चाचा ने अशोक बाबू से कहा कि हरे-भरे पूरे बागीचे जैसे पेड़ को उजाड़ने वाला यहां कभी भी अपार्टमेंट पूरा नहीं बना सकेगा. हजारों लोगों की बददुआ भू-माफिया ने ली है, वो बचेगा भी नहीं, देखना अशोक वो मरेगा. अशोक बाबू ने कहा कि आप ठीक कहते है रामधनी चाचा जीवित पेड़ को काटा है तो पेड़ में भी तो जान होती है, उसकी आत्मा भी तो भटक रही होगी, क्या वो उस भू-माफिया को छोड़ेगी ?
छूप-छूप कर रोज उस विशाल पेड़ के साये में मिलने वाले रसूल और पिंकी को सबसे ज्यादा फजीहत हुयी थी पेड़ के कट जाने से. प्यार में पागल दोनों अंतर धार्मिक प्रेमी-प्रेमिका पेड़ के कट जाने से कई दिनों से आपस में नहीं मिल पा रहे थे तो बद्दुआ दे रहे थे उस भू-माफिया को जिसने उन्हें एक-दूसरे से मिलने से बंचित कर दिया था.
क्हते है कि जैसे दुआ में असर होता है वैसे ही बद्दुआ में भी असर होता है. जैसे-जैसे अपार्टमेंट का कार्य आगे बढ़ता गया वैसे-वैसे उस भू-माफिया को कई बीमारियों ने एक साथ घेर लिया. हाइपर टेंशन, डायबीटिज, पुलरेसी और न जाने कौन-कौन सी बीमारियों का शिकार हो गया था वह भू-माफिया. इधर अपार्टमेंट का दूसरा तल्ला भी पूरा नहीं हो पाया था कि आठ-दस मिस्त्री, मजदूर और दो इंजीनियर दुघर्टना मे अपनी जान गंवा चुके थे. सभी मृतक के परिवार वालों को मुआवजा देते-देते भू-माफिया भी तंग आ चुका था तिस पर उसे बीमारियों की फौज ने घेर रखा था. डाक्टर उसे करैले का रस और सूखी रोटी खाने को कहा, काम के संबंध में टेंशन नहीं लेने की ताकिद कर गए थे. बीमारी से घिरा भू-माफिया को अपार्टमेंट के कार्य को बीच में ही स्थगित करना पड़ा. बैंक का लोन का तकाजा बैंकवाले शुरू कर दिए थे. भूू-माफिया का अपार्टमेंट बनाकर उसे बेच कर पैसे कमाने की योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा था. तनाव बढ़ता जा रहा था, भू-माफिया के करोड़ों रूपए उसके बीमारी को ठीक नहीं कर पा रहे थे. डाक्टर ने उसे शहर छोड़ कर किसी हिल स्टेशन जाने की राय दिया वरन् उसे बचाना मुश्किल था. भू-माफिया आनन-फानन में शिमला का रूख किया. पेड़ों की वादियों में पहुंच गया था भू-माफिया. रात को चांदनी रात में शिमला के माॅल रोड़ पर जब वह टहलने निकला तो चारों तरफ फैले हुए पेड़-पौधे को देखकर उसका तनाव कम हो गया था. एक रात सड़क किनारे बने लकड़ी के बेंच पर चूपचाप भू-माफिया बैठा हुआ था और सामने सड़क के दूसरी ओर गहरी खाई को देख रहा था जहां चांदनी बिखरी पड़ी थी. एकाएक उसे खाई में खड़ा वही पीपल का पेड़ जिसे उसने कटवा दिया था, नजर आने लगा. वह खड़ा हो गया, उसे लगा कि वह जागते हुए क्या सपना देख रहा है ?
उस रात जब भू-माफिया होटल के कमरे में सो रहा था तो हर एक-दो घंटे में उसकी नींद उचट जाती थी. सपने में उसे बार-बार वहीं पीपल का पेड़ खाई से उठता हुआ दिखाई पड़ता रहा, सूबह होते-होते भू-माफिया बेहोश हो चुका था. सूबह चाय देने वाले बैरे ने होटल मालिक को बताया कि कमरे में साहब बेहोश पड़े है, जल्दी-जल्दी होटल मालिक ने डाक्टर को बुलवाया, डाक्टर ने भू-माफिया का चेकअप किया लेकिन डाक्टर के आने में देर हो चुकी थी, दो घंटे पहले ही उच्च रक्तचाप और सूगर लेबल बढ़ जाने के कारण उस भू-माफिया की मौत हो चुकी थी. भू-माफिया के मौत का ज्ञात कारण तो उच्च रक्तचाप और सूगर लेबल का बढ़ना ही था पंरतु ऐसा हुआ था एक जीवित वर्षों पूराने पेड़ के श्राप के कारण.
राजीव आंनद
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