Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पिता

 

तिल-तिल मरते देख पिता को
हाय न मैं कुछ कर पाया
सका न उतार पृत ऋण को
व्यर्थ ही मैंने जीवन पाया

 

पिता के कंधे पर चढ़कर
उंचाई कुछ खास मैंने पाया
दिल हिल जाता है यह सोचकर
क्यों पिता को विस्तर से उठा न पाया

 

पिता के साथ गरीबी का न था एहसास
खाते-पीते दिन बिता दिया बदहवास
एक दिन भी न कोई पूछने आया
खोने लगे थे जब पिता होशोहवास

 

किस ब्रदरहुड़ की बात करते रहे पिता
आज तक तो समझ मैं नहीं पाया
क्या मदद करेगा ये आपका ब्रदरहुड
गर्मी में भी आज तक कोट जो उतार नहीं पाया

 

व्यर्थ गंवाया पिता ने
कचहरी में अपने पचास साल
कुछ और किया होता तो
न होता आज हाल बेहाल

 

कुलीन बन कर कमाते रहे
मोवक्किलों ने जो दिया खाते रहे
घर पर फूटी कौड़ी न रही
विस्तर क्या पकड़ा मोवक्किल जाते रहे

 

ह्दय कांप उठता है पिता की हालत देखकर
किस भूल की उन्हें ऐसी मिली सजा
ईमानदारी का क्या यही मिलता है सिला
कजा के पहले क्यों मिली मौत से बदतर सजा

 

मुझे भगवन एक प्रश्न आपसे है पूछना
मरने के पहले मारने की ये कैसी सजा
क्यों ईमानदारों को इतना कष्ट देते हो
बेईमानों को तो मिलती नहीं कोई सजा

 

घर पूरा अशंत हो गया
संास बेगार सी लगती है
सभी के ह्दय में दुख समाया
कोई भी हंसने से डरती है

 

पिता जब करते है क्रंदन
दिल थामे हम सब सुनते है
ह्दय फटता जाता है
फिर चाक ह्दय को बुनते है

 

और कई दुखों ने आकर
बनाया हमारे ह्दय में बसेरा
घनीभूत होता दुख अंधियारा
इंतजार रहता हो जाए सबेरा

 

हंसू तो लगता जुल्म कर रहा
खाउं तो लगता हक नहीं है
रूआंसा हो हम सब ने निर्णय लिया
अब हंसना हमलोगों का ठीक नहीं है

 

रो-रो कर माँ अधमरी हो रही
क्रंदन माँ का मिल जाता जब पिता के क्रंदन में
जीवन व्यर्थ सा लगने लगता है
घर डूब जाता है आंसूओं के संमदर में

 

काम लेने के लिए आज भी
मोवक्किल-वकील अधीर है
पर व्यथा कथा पिता की सूनने को
प्राय सभी बघिर है

 





राजीव आनंद

 

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