Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राजीव आनंद

 

हाइकु



लम्हों का दर्द
भारी पड़ जाता है
सदियों पर

 

बाजारवाद
चीजें नहीं टीकती
सिर्फ बिकती

 

पागल मन
चाहता रहा तुम्हें
तू बेखबर



चांदनी रात
दो परछाईयों ने
की कुछ बात

 

 

आँसू की बूंदें
ढलकती गालों पर
ओस की बूंदें



असाधारण
होता है रह जाना
साधारण-सा

 

प्यार के गीत
सूबह-शाम मैंने
गाए, सूनाए

 

प्राचीन सूर्य
देती नित्य प्रकाश
ताजगी भरी

 

मलाला बनी
है रानी लक्ष्मी बाई
पाकिस्तान की

 

बेमतलब
सब खूद में डूबे
जिंदगी हुई

 

 

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