Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राजीव आनंद

 

 

मुक्तक

 

  • मोहब्बत तो मैंने भी किया
    पर इजहार न कर पाए
    खत किताबों में रह गए
    किताबें कबाड़ी को बेच आए

     

    • मोर को नाचते देख कर मुस्कुराना
      पपीहे की आवाज को सुनकर गुनगुनाना
      अब हो चुका भावना पुराना
      कैडवरी खाकर फैषन बना मुस्कुराना

 

  •  सात हजार साल पहले का
    नंगधडंग जंगली बंदर
    हाथों में लेकर मोबाइल फोन
    बैठा है लैपटाँप लेकर सोफा के अंदर

     

    प्यार में लेने के वजाए
    देना गर सीख जाए हम
    गमों से भरी यह दुनिया
    जन्नत से न होगी कम

     

    कौन नेता नहीं चाहता
    करना देश सेवा
    अलग बात है नींद आ जाती
    खा-खा कर मेवा

 

  • उत्तराखंड के पीड़ितों को समर्पितं

     

    विकास के नाम पर हम
    प्रकृति के प्रति होते गए क्रुर
    इसलिए प्राकृति आपदाओं से
    तोड़ रही है हमारा गुरूर

    अगर विकास करने के नाम पर
    प्राकृति के साथ क्रुर हम न हुए होते
    उत्तराखंड़ में सैकड़ों-हजारों लोग
    प्राकृतिक आपदा के षिकार नहीं हुए होते

     

    नेता प्राकृतिक आपदा को देखकर
    बहाता है शत्-षत आंसू घडियाली
    हेलीकाप्टर पर बैठ कर लेता जायजा
    लगाने को जुगाड़ में है अपने लिए हरियाली

 

  • अगर हम नहीं होंगे
    तो क्या ईष्वर होगा ?
    ईष्वर के अस्तित्व के लिए
    हमारा होना आवष्यक होगा !

 

  • ईष्वरीय सत्ता हमसे ही तो है
    हम नहीं होंगे तो क्या ईष्वर होगा ?
    इंसानों से गर पृथ्वी खाली हो गयी
    तो फिर ईष्वरीय सत्ता किस पर होगा ?

 

  • उसने अपने प्रेमी की पहचान बतायी
    जिसके हाथों में छाले है
    पैरों में बिवाई है
    वही मेरा सौदाई है !

 

  • जीवन ने दिया वो आघात है
    लौटा रहा हॅंू जिसे समाज कहता प्रतिघात है
    कीमत सफलता की चुका सकता नहीं
    खूष है दिल करता असफलता को आत्मसात है

 

  • बात-बात पर सिद्धांत थूकते नेतृत्व
    नाइंसाफी का, विकास के अभाव का
    कभी समता का, कभी शोषण का
    ज्वलंत उदाहरण है बौद्धिक बकवास का

 

  • एक आदमी गर अपने
    जीवन में सात पेड़ लगाएगा
    प््रााकृति से ले रहे आक्सजीन
    से वह ऋण मुक्त हो जाएगा

 

  • अरे लेने वाले आदम के पुत्र
    कुछ तो कभी देना सीखो
    प्राकृति तो तुम्हें देती आ रही
    तुम भी तो वापस देना सीखो

 

  • सफल होने की हवस में
    नैतिक मर्यादा छोड़ दी
    सूंदर काया का फायदा उठाया
    सफलता के कई कृतिमान तोड़ दी

 

  • शरीर एक धर्मशाला
    आत्मा एक मुसाफिर
    अन्तर्यात्रा एक तैयारी
    चल देना किस्मत हमारी

 

  • कर्म में वासना न रहे तो
    जीवन साधना बन जाती है
    जनकल्याण में अपना कल्याण
    परम उपलब्धि जीवन की कहलाती है

 

  • बछड़े ने अपनी माँ को
    जोर से पूकारा माँ.....
    बिरजुआ की मइया सब छोड़कर
    दौड़ी गोहाल चली आयी

 

 

  • तारों से भरा आकाश
    चावल दानों से भरा हो जैसे थाल
    टूट रहा है एक तारा
    मैं भी तोडूंगा उपवास

 

  • बैलों के गले में टंगी
    घंटियों से आती आवाज
    सूरमयी शाम की आगाज
    डूबते सूरज को सूनाती साज

 

  • सभी इंजीनियर चाहते है बनना
    कई हो जाते है इसमें नाकाम
    घर लौट कर क्या कर पाते है
    ये असफल इंजीनियर दूसरा कोई काम

 

  • रेल के धड़धड़ाती आवाज में
    मुझे एहसास हो आया
    माँ की छाती में
    इन दिनों होता धक-धक

 

 

  • पहले और अब
    गोरैया के आवाज में है दर्द
    पहले गोरैया गाती थी
    अब गोरैया कराहती है

 

  • पैसे की अक्सर ही
    खूशी से अदावत होती है
    पैसे से जब जेब भर जाती है
    दिल से खूशी नदारत होती है

 

 

  • क्यों भले आदमी को
    ईश्वर इतना कष्ट देता है ?
    ईमानदारी से जीने का
    क्या यही सिला मिलता है ?

 

 


 


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