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समय से मुठभेड़ करती अदम गोडंवी की कविताएं

 

 

adam

 

‘‘ आइए महसूस करिए जिंदगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलंूगा आपको ’’


अदम गोंडवी ने कविता के एक नये विद्या को विकसित किया था जो हिन्दी अकविता और उर्दू गजल का बेहतरीन मिश्रण था जिसमें अदम गोंडवी ने खास ख्याल इस बात कर रखा था कि उनकी रचनाएं आम लोगों के जुंवा तक पहुंचें लेकिन अदम गोंडवी की अवहेलना उनके जीवन काल में भी हुयी और आज तक हो रही है. गत 18 दिसंबर को उनकी पहली बरसी थी परंतु उन्हें अपेक्षित जगह प्रिंट मीडिया में नहीं मिली. अदम गोंडवी की कविताएं आज के समय से मुठभेड़ करती हुयी वैसी कविताएं हैं जिसे आम लोगों के लिए लिखा गया है और आम लोगों तक उसकी पहुंच होनी चाहिए.


रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंड़वी कई मायने में ‘अचरज’ की तरह थे। प्रसिद्ध आलोचक डा. मैनेजर पांडेय ने अदम गोड़ंवी की कविताओं पर टिप्पनी करते हुए कहा कि ‘‘ कविता की दुनिया में अदम एक अचरज की तरह है।’’ रामनाथ सिंह का जन्म उत्तरप्रदेश के आटा ग्राम परसपूर गोंडा में 22 अक्टूबर 1947 को हुआ था। सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश का गांेडा जिला सामंती प्रथा के लिए कुख्यात था। यही कारण है कि सामंती प्रथा पर करारा प्रहार करते हुए ‘चमारों की गली’ जैसे चुनौती पूर्ण कविता अदम गोंडवी ने लिखे। जो इस प्रकार है,


‘‘ आइए महसूस करिए जिंदगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलंूगा आपको
जिस गली में भूखमरी की यातना से उबकर
मर गयी फुलिया बेचारी इक कुंए में डूब कर
है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी
चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हॅंू सरजू पार की मोनालिसा ’’


भारत के स्वतंत्रता के साथ अपनी जिंदगी की शुरूआत करते हुए जैसे-जैसे स्वतंत्रता शैशव से जवानी की ओर बढ़ी, अदम गोंडवी भी शैशव से जवान हुए और बड़ी नीडरता और साफगोई से राजनीतिक पांखड़ पर वैसा ही करारा प्रहार कविता के माध्यम से किया जैसा धार्मिक पांखड़ पर कभी कबीर ने किया था। उनकी एक कविता जो हिन्दु कर्मकांड को झकझोरते हुए कुछ इस प्रकार है,


‘‘ वेद में जिनका हवाला हशिए पर भी नहीं
वे अभागे आस्था विश्वास ले कर क्या करें
लोकरंजन हो जहां शंबूकबध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास ले कर क्या करें
कितना प्रगतिमान रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास ले कर क्या करें
बुद्धिजीवी के यहां सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती है मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें ’’


अदम गोंडवी ने कविता के एक नये विद्या को विकसित किया था जो हिन्दी अकविता और उर्दू गजल का बेहतरीन मिश्रण था जिसमें अदम गोंडवी ने खास ख्याल इस बात कर रखा था कि उनकी रचनाएं आम लोगों के जुंवा तक पहुंचें। काफी सरल और साधारण तरीके से असाधारण कटाक्ष राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था पर करते हुए आपनी बातें कहा और इसका फलाफल उन्हें कुछ अच्छा नहीं मिला। उनकी कविताएं आम लोगों तक पहुंच जरूर गयी थी परंतु वे जीवन अपना अभाव में ही काटे। उन्होने देश की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए लिखा कि

 

‘‘ सौ में साठ आदमी फिलहाल जब नाशाद है
दिल पर रखकर हाथ कहिए देश क्या आजाद है
कोठियों से मुल्क के मेयर को मत आंकिए
असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है ’’


क्या खूब लिखा है सौ फीसदी सच हिन्दुस्तान का हाल अदम गोंडवी ने। हिन्दी साहित्य में विद्रोही तेवर रखने वाले चाहे वे उपन्यास सम्राट प्रेमचंद हो या आधुनिक कबीर अदम गोंडवी हो, जीवन भर आभाव में ही रहे। धन के आभाव में बीमारी से लड़ नहीं पाए, एक-दो को छोड़कर कोई साथ देने नहीं आए और अततः 18 दिसंबर वर्ष 2011 को लखनउ में हमलोगों को छोड़कर चले गए। धन नहीं रहने का कभी मलाल नहीं रहा, एक अचरज भरी बेबाकी और साफगोई ने गोंडवी को आम लोगों का कवि बना दिया। गंवार से दिखने वाले अदम गोंडवी धोती और कमीज पहनकर जब बड़े शान से अपनी कविताओं का पाठ मंच पर करते तो सुनने वाले चाहे जो भी हों अंदर तक हिल जाते थे। उनकी इस तरह के कविता को सुन कर कौन नहीं हिलेगा कि.....


‘‘हिन्दु या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुर्सी के लिए जज्बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफन है जो बात अब उस बात को मत छेड़िए
गलतियां बाबर की थी, जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िए ’’
गरीबी पर क्या खूब लिखा है अदम गोंडवी ने कि ‘‘घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दंू धूप फागून की नशीली है
सूलगते जिस्म का फिर एहसास हो कैसे
मोहब्बत की कहानी अब जली माचीस की तीली है ’’
लालफिताशाही पर करारा चोट करते हुए कहते है कि ‘‘ जो उलझ कर रह गयी फाइलों के जाल में
गांवों तक वो रोशनी आएगी कितने साल में
जिसकी कीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में
ऐसा सिक्का ढ़ालिए मत जिस्म की टक्साल में ’’


एक दूसरी कटाक्ष देखिए ‘‘ जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे
कमीशन दो तो हिंदोस्तान को नीलाम कर देंगे
सदन में घूस देकर बच गयी कुर्सी तो देखोगे
वो अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे ’’


अदम गोंडवी की कविताओं में भारत का भूत और भविष्य दोनों देखने को मिलता है। एफडीआइ में कमीशनखोरी अभी चर्चा का विषय बना हुआ है जिसकी झलक उपर के कविता में स्पष्ट नजर आती है। अदम गोंडवी की शायद सर्वाधिक उधृत की जाने वाली कविता से लेख का समापन करूगां कि


‘‘ काजू भूने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी है तस्कर हो या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिवास में
आजादी का वो जश्न मनाये तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तालाश में ’’


अदम गोंडवी के कविताओं के दो संग्रह ‘समय से मुठभेड़’ और ‘धरती की सतह पर’ किताबघर प्रकाशन ने छापा है परंतु अक्सर उपलब्ध नहीं रहता है।

 

 


राजीव आनंद

 

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