डीएम शंभू दयाल की पत्नी मोना दयाल खूद को कमिशनर से कम नहीं समझती थी. उनकी दिनचर्या होती थी जिम खाने की लेडी इन्सद्रक्टर द्वारा व्यायाम से, उसके पश्चात डायटिशीयन घर पर ही आ जाती थी और कच्चे साग-सब्जी, फल, जूस वगैरह केलौरी, वीटामिन और लवण पदार्थों का संतुलित डायट तैयार कर देती थी, जिसे ग्रहण करने के बाद, ब्यूटीपार्लर से एक लेडी ब्यूटीशियन आती थी, जो डीएम साहब की पत्नी मोना के नख से सिर तक का ऋंगार-पटार कर के जाती थी. श्रीमति मोना दयाल फिर सरकारी एम्बेसडर से सरकारी चालक को लेकर निकलती थी मार्केटिंग करने. शाम को लौटने के बाद संगीत का आनंद लेती थी. दो छोटे-छोटे बेटे और बेटी को सुलेखा नामक नर्स देख भाल करती थी और श्याम बाबू पढ़ाने आते थे बच्चों को.
डीएम साहब के बड़े भाई शंकर दयाल गांव में ही रहते थे. वैसे तो कभी कभार डीएम साहब फोन पर अपने बड़े भाई, भौजाई और भतीजा-भतीजी का हाल-चाल पूछ लिया करते थे. शंकर बाबू की पत्नी माया देवी एक बार अपने देवर के यहां शहर जाने की जिद कर शंकर बाबू को लेकर शहर चली आयी. डीएम साहब के आवास पहुंचने पर चपरासी ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया. परिचय जानने के बाद दौड़ा हुआ अंदर गया और मेम साहब को बतलाया कि गांव से साहब के बड़े भाई और उनकी पत्नी आयी हुई है.
मेम साहब ने चपरासी को कहा, सुनो उन्हें सर्वेंट-क्वार्टर में टिका दो और हां, खाने-पीने, चाय-नाश्ता, विस्तर वगैरह की तकलीफ मत होने देना. चपरासी जाने को मूड़ा ही था कि मेम साहब ने कहा कि कह देना साहब टूर पर है आने पर मिल लेंगे.
चपरासी हुकूम बजाते हुए कहा, जी मेम साहब.
शंकर दयाल बाबू और उनकी पत्नी माया देवी को चपरासी बाइज्जत सर्वेंट-क्वार्टर में ले गया.
शंकर दयाल बाबू को तो कोई फर्क नहीं पड़ा परंतु उनकी पत्नी माया देवी भीतर ही भीतर आग बबूला हो रही थी.
चपरासी थोड़ी देर में सारा इंतजाम सर्वेंट-क्वार्टर में कर दिया. शंकर दयाल बाबू सर्वेंट-क्वार्टर में ज्यादा घरेलू महसूस कर रहे थे. आंगन में कुंए के पानी से नहा-धो कर तैयार हो गए. चाय-नाश्ता चपरासी लाकर करवा दिया. शंकर दयाल बाबू की पत्नी माया देवी अपनी देवरानी के व्यवहार से क्षुब्ध थी परंतु क्या करती जब पति को कोई फर्क नहीं पड़ता हो तो पत्नी क्या करती ? माया देवी भी अंतत मन को मारकर गूसलखाने चली गयी.
शंकर दयाल बाबू चाय-नाश्ता कर खटिया पर लेट गए और सोचने की मुद्रा में आ गए थे. इसी बीच चपरासी आया और वहीं बैठ गया. शंकर दयाल बाबू चपरासी से उसका नाम पूछा तो चपरासी ने बताया कि उसका नाम रामधनी है. शंकर दयाल बाबू रामधनी से बात-चीत करने लगे. रामधनी बात-चीत करते हुए बतला रहा था कि उसके पिताजी का देहांत बहुत पहले ही हो गया था. गांव में माॅं है जिसे वह कमाकर पगार भेजता है और बीच-बीच में माॅं से मिलने गांव भी चला जाता है.
रामधनी बार-बार शंकर दयाल बाबू को अपने ही हाथों से अपने पांव को दबाते देख रहा था, उसने झट से शंकर दयाल बाबू के पांव को दबाने लगा. शंकर दयाल बाबू को रामधनी का उनका पांव दबाना अच्छा नहीं लग रहा था. उन्होंने मना भी किया, रामधनी ऐसा मत करो, तुम डीएम साहब के चपरासी हो !
रामधनी बोला, नहीं बड़े साहब, इसमें कोई हर्ज नहीं, आप मेरे बुर्जग पिता समान है. ऐसा करने से मुझे पुण्य ही मिलेगा. शंकर दयाल बाबू क्या करते चुप हो गए, सोचने लगे, रामधनी चपरासी का कार्य करता है पर कितना संस्कारी है और डीएम साहब की पत्नी उच्च घराने की सुशिक्षित महिला होने पर भी संस्कार.........
राजीव आनंद
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