Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चुपके-चुपके कुछ कहता है

 
चुपके-चुपके कुछ कहता है... कौन है मुझसे छुपा रहता है !! आग तो सब ख़ाक कर देती है और धुंआ ही बस रह जाता है !! बनता हुआ-सा सब दीखता है बन-बन कर मिट जाता है !! राम कहने से क्या डरता है आख़िर में राम ही रह जाता है !! ख़ुद के भीतर समाया हुआ जो इतना हल्ला वो क्यूँ करता है !! तन-मन-धन की बात ना कर इनसे क्या तू चिपका रहता है !! कुछ और ही मैं कहना चाहता हूँ "गाफिल" क्यूँ बीच में आ जाता है !!
 

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