भीड़ में तनहा...दिल बिचारा नन्हा... साँस भी न ले सके,फिर क्या करे...?? सोचते हैं हम...रात और दिन..... ये करें कि वो करें,हम क्या करें...?? रात को तो रात चुपचाप होती है.... इस चुप्पी को कैसे तोडें,क्या करें...?? दिन को तपती धुप में,हर मोड़ पर... कितने चौराहे खड़े हैं हम क्या करें?? सामना होते ही उनसे हाय-हाय.... साँस रुक-रुक सी जाए है,क्या करें?? कित्ता तनहा सीने में ये दिल अकेला इसको कोई जाए मिल,कि क्या करें?? जुस्तजू ख़ुद की है"गाफिल",ढूंढे क्या ख़ुद को गर मिल जाएँ हम तो क्या करें??
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