Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं भी कुछ कहूँ

 

मैं भी कुछ कहूँ.........!!
बस तुझे बसा रखा है आंख भर....
अब कुछ नहीं बसता आँख पर !!
मरने के बाद खुद को देखा किया
मैं बचा हुआ था बस राख भर....!!
झुक जाने में आदम को शर्म कैसी
कौन बैठा रहता है तिरी नाक पर !!
दिन को तो फुरसत नहीं मिलती
शब रोया करती है रोज़ रात भर !!
गौर से देखो तो अलग नहीं तुझसे
खुदा इत्ता-सा है,बस तेरी आँख भर !!
बसा तो लेता गाफिल तुझे भी भीतर
दामन ही छोटा-सा था,बस चाक भर !!

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