Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अंतिम सांस तक.....

 
अंतिम सांस तक.....

सोनू से प्रेम है
उससे मुझे प्रेम है
कुछ-कुछ स्वर्णाभ अक्षत सा है.....
कुन्दन सा खरा शाश्वत है
स्वयं से प्रकाशित आभाषित
ईश्वरत्व की सत्यता जैसा जो
हमारे प्रेम पर आकर रुक जाती है
और बस रुकी ही रहती है
      अंतिम साँस तक ................

मैं से तुम का होना
तुम से मैं का होना
कुछ कुछ कमल की तरह होना है
जो स्वतः ही  खिल जाया करती है
सूर्य प्रकाश की लालिमा चुराकर
और सुन्दर लगने लगती है
उस जल में ठहरकर जलज
और बस खिली ही रहती है
         अंतिम सांस तक...........

प्यार में होना
और प्यार का एहसास होना
कुछ कुछ इन फूलों की खुशबू सी है
जो स्वतः ही घुल जाती है
पूर्वी हवाओं की नमी चुराकर
और बिखर जाती है
फिजां में कुछ इस तरह
और बस बिखरी ही रहती है
       अंतिम सांस तक..........

मंदिर की देवी होना
और प्रेम में देवी होना
कुछ कुछ इन पवित्रता की सी हैं.....
जो स्वतः ही पावन बन जाती हैं
मन की पवित्र भावना चुराकर
और ठहर जाती हैं
सोनू अपने प्रेमी राज के दिल में
और देवी बन हमेशा रहती है
और बस बसी ही रहती है
         अंतिम सांस तक.............

*****************************
राजेन्द्र कुमार पाण्डेय " राज "
प्राचार्य
सरस्वती शिशु मंदिर 
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
" दीवान पैलेस "
वार्ड परिषद 02, शांतिनगर
बागबाहरा
जिला-महासमुन्द ( छत्तीसगढ़ )
पिन कोड -493449

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ