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वफ़ा के जो गीत वो भुलाने लगे हैं।
अपने किये की सज़ा हम पाने लगे हैं।।
बदनसीबी का ख़िताब हमको हासिल
बुरे हम हुए गैर उनको भाने लगे है।।
बर्बादियों के शोलों में दिल जलाते रहे
साथी को साथ लेकर ग़म मिटाने लगे हैं।।
कभी पकड़ा था निशात का दामन
वही दामन वो हमसे छुड़ाने लगे हैं।।
तनहाई में अपनी दास्ताँ सुनाते रहे
हम ख़ामोशी के गीत गाने लगे हैं।।
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राजेन्द्र प्रकाश वर्मा
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