Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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dohey

 

 

।।1।।
नद, नाले, सरवर सहित, सरित विहंग झील।
सागर के है सामने, नभ में ज्यौं कंदील।
।।2।।
कोई न जाने मौत का, कैसा है घर-गांव।
कल्पित भय से कांपते, हर प्राणी के पांव।
।।3।।
मंदिर-मस्जिद, गीरजा, लड़ते नहीं जनाब।
राजनीति लड़ती सदा, करके जोड़-हिसाब।
।।4।।
बड़ा वही है आजकल, मन धारे जो धीर।
छोटेपन की काट में, खींचे बड़ी लकीर।
।।5।।
दुर्जन से दूरी भली, रार दुखों की खान।
सज्जन की संगत सुखद, शीतल चंदन जान।
।।6।।
प्रेम त्याग का संग है, जुड़े दोऊ इक फ्रेम।
प्रेम करे तो त्याग कर, त्याग करे तो प्रेम।
।।7।।
विरह चहे प्रिय से मिलन, मिलन चहे चिर केलि।
छुपा-छुपाई केलि में, होत विरह ते मेलि।
।।8।।
लक्ष्य वही है भेदता, जिसमें रहे जुनून।
पत्थर सी दृढ़ता रहे, सर्द न होवे खून।
।।9।।
मां ना होती जगत में, जीवन था निस्सार।
मां की ममता से हुआ, रिश्तों का विस्तार।
।।10।।
नये दौर का आदमी, केवल एक मशीन।
दौड़ रहा है रात-दिन, बन संवेदनहीन।
।।11।।
चादर की ब्यौंत में, अपने तन को ढांप।
नीयत को भटका मती, वक्त रहा है भांप।
।।12।।
पति-पत्नी के मध्य यदि, मधुर रहें संबंध।
जीवन में बिखरे सदा,मोहक दिव्य सुगंध।
।।13।।
भाई का गुण नीम सा, कड़यावे मिठियाय।
कटु बोले पर वक्त पर, अड़े ढाल बन जाय।
।।14।।
बहन प्रीति ममतामयी, पावन पुलिन प्रपात।
देत वीर को भीर में, घीर सघन सुखदात।
।।15।।
दूषित पर्यावरण से, चिंतित है संसार।
आने वाला कल सहे, जल का हाहाकार।

 

 

 


--राजेन्द्र सारथी

 

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