मैं तो अकेले जलता हूँ,
सारी महफ़िल देख रही है,
मैं खुद से ही डरता हूँ,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !
मेरे जलन की रोशनी,
उनको खार सी चुभती है,
जख्म मुझे मिले मरघट में मैं हूँ,
भला उनकी आँख क्यों दुखती है,
मैं अपनी यादो में आपने,
अरमा डुबो कर जलाता हूँ,
भला कोई हृदय क्यों आकर,
मेरे मरघट पे मंडराता है !
मुझे डर है लोग इल्जाम देंगे,
कहीं मैं दीपक न बन जाऊं !
........... रचना राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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