Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नदी

 

 

न बांध मुझे ये इन्सान,
इस मीट्टी के घरोंदे में !
कब तक रोकेगा मुझे भला
मैं तो चलने के लिए आई हूँ !
मेरे अपने कुछ राह तकते हैं,
देख मुझे यूँ उनके अश्क छलकते हैं !
जीवन देने आई हूँ मैं,
देख वो कैंसे बिलखते हैं !
आ जाऊं अपने पर यदि मैं
जड़ से मिटाकर ले जाउंगी,
दया भाव कुछ मन में मेरे,
इसलिए दुःख कुछ पि जाउंगी
पर मेरे थमने और चलने में
है दोनों में नुकसान तुझे
खुछ दूर खड़े तेरे अपने प्यासे
हा प्यास भुझानी उनकी मुझे !
मैं चलने के लिए आई हूँ
मेरा चलना ही हितकर है,
मेरे रुकने से तेरा कहाँ
आगे सोच कहाँ सफ़र है

 

 

 

...........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

 

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