Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ये आँखे तो दर्पण हैं

 

ये आँखे तो दर्पण हैं
अधर पर जो न आ पाये
इन पर हर रोज़ उभरता है
मन का मौसम कैंसा भी हो
इन पर सब कुछ दिखता है
ये आँखे तो .........ये आँखे तो ....
ये आँखे तो दर्पण हैं !
खुशियाँ भी फुहवारे बन कर
गम आते हैं लेकर रिमझिम
अक्स इन पर ऐंसे उभरते
जैंसे मानो हो प्रतिबिंम्ब
ये आँखे तो ......... ये आँखे तो ........
ये आँखे तो दर्पण हैं !

 

 

.......रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ