Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जलना हो तो सूरज सा जल के देखो

 

दूसरों की खुशियों पे
दुःख जताने वालों,
आसमां की तरह
छत चाहाने वालों,
क्यों तिनके तिनके पे
इस कदर जलते हो.
जब जलना ही है तो
सूरज सा जल के देखो,
धरती की छाती को
फाड़ने वालों,
चाँद की सतह पर
पताका गाड़ने वालों,
खुद के कदमो की
जमीं को भी देखो,
इरादे हैं तुम्हारे नेक तो
सूरज सा बन के देखो
हर ले हर तम
दुसरे के घर का
चिराग ही है अगर बनना
तो येंसा बन के देखो
जब जलना ही है तो
सूरज सा जल के देखो !

 

 

 

........रचना -राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'

 

 

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