आसमान में उड़ती हस्त-रेखाएं
कहानी
संपूर्ण शहर की फिज़ाओं में और दूर-दूर से आ रही हवाओं में हस्त–रेखांए ही हस्त-रेखाएं उड़ रही थीं |सारा आसमान हस्त –रेखाओं से बरगद के वृक्ष की जटाओं की भांति,जैसे भरता जा रहा था |टेढ़ी-मेढ़ी,सीधी-तिरछी ,कोणी-त्रिकोणी और कंटीली हस्त-रेखाएं हवा संग उड़ती जा रही थी |आहिस्ता-आहिस्ता उनके साथ मद्धम-मद्धम-सी भयानक और अत्यंत भयभीत करने वाली आवाज़ें भी आने लगी थीं |आहिस्ता-आहिस्ता धूप का रंग भी मटमैला किरमची-सा होता प्रतीत हो रहा था|हस्त-रेखाएं सारे आसमान में विलाप कर रही किसी औरत के मखमली-बालों की भांति घना-सा काफ़िला बना कर उड़ रही थीं,पर उनके हाथ तो पीछे ही कहीं छूट गए लग रहे थे |हस्त-रेखाएं लावारिसों की तरह ही सारे आसमान में उड़ रही थीं |शहर में घनघोर अंधेरा छा गया था |लोग भयभीत होकर अपने-अपने घरों में दुबक गए थे | कोई भी घर से बाहर आने की हिम्मत नहीं कर रहा था |जो भी कोई सड़क पर खड़ा था ,वो भी किसी न किसी आश्रय की तलाश में था|अव्यवस्था ने प्रत्येक वस्तु को अपने प्रभाव में लेने की पूरी तैयारी कर ली थी |अजीब क़िस्म की उथल-पुथल का माहौल बनता जा रहा था |सहम और भय का एक भयंकर वातावरण शहर में दिखना शुरू हो गया था |हस्त-रेखाओं के हाथ कहीं पीछे ही छूट गए थे या फिर हस्त-रेखाओं ने हाथों को कहीं पीछे छोड़ दिया था |किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था |धीरे-धीरे हस्त-रेखाओं का काफिला आगे-ही-आगे बढ़ता जा रहा था |
बड़े आश्चर्य की बात थी की हस्त-रेखाएं पीछे बहुत दूर तक ,आदि से अनंत तक फैली हुई थीं |हस्त-रेखाओं का काफिला ज्यों –ज्यों आगे बढ़ता जा रहा था ,त्यों-त्यों और भी घना होता जा रहा था |अचानक भय का वातावरण उस समय और भी भयानक हो गया ,जब उस शहर में रह रहे लोगों को पता चला कि उनके हाथों की रेखाएं भी उनके हाथों से गायब होकर उस काफ़िले में शामिल हो गई थीं |सब तरफ हाहाकार मच गई |प्रत्येक हाथ से हस्त-रेखाएं गायब हो कर आहिस्ता-आहिस्ता आसमान में उड़ रहे हस्त-रेखाओं के काफ़िले में शामिल होती जा रही थीं |लोग भय से कांपने लगे |सब के हाथ खाली हो गए ,बिल्कुल कोरे कागज़ की तरह |
कुछ लोग अपने-अपने घरों से बाहर आकर ,तो कुछ अपने घरों की छतों पर चढ़कर विलाप करने लगे|हस्त-रेखाओं से खाली हुए हाथ आसमान की ओर करके विलाप कर रहे लोग ,ईश्वर के आगे और कुछ लोग अपने बुजुर्गों के आगे दुहाई दे-दे कर विलाप करने लगे|
“अरे मर गए ,हाए मर गए ----अब क्या करेंगे ?”
“अब क्या करेंगे --?”
“लूट गए ---मारे गए”
“हाय ,हमारे भाग्य की रेखाएं कौन चुरा के ले जा रहा है --?” की आवाजों से सारा शहर गूंज रहा था पर हस्त-रेखाओं का काफ़िला अपने स्वभाव के अनुसार अपने-आप ही आगे बढ़ता जा रहा था |हस्त-रेखाओं का काफ़िला जहां-जहां भी जाता ,वहां-वहां के लोगों की हस्त-रेखाएं अपने काफ़िले में शामिल कर लेता |सबके हाथ खाली होते गए ,बिल्कुल साफ एकदम हस्त-रेखाओं से रहित |
बच्चे हस्त-रेखाओं से रहित हाथों को देख कर हंसने लगे और अपने स्वभाव अनुसार खेलने लग गए |शहर के कुछ बुज़ुर्गों ने ,जोकि समझदार थे ,इस सारे माहौल को समझने का प्रयास किया |घर-घर बुजुर्गों ने मोर्चा संभाल लिया |उनको लग रहा था कि या तो कोई अनहोनी होने वाली है या फिर हमसे कोई भूल हो गई है |हर कोई अनुमान लगा रहा था पर समझ किसी को कुछ भी नहीं लग रहा था |अंत में सारे शहर के बुज़ुर्गों ने शहर में सभा बुलाकर सारे शहर को ढांढ़स बांधने की पहल की |सारा शहर डर से सहम कर एक जगह एकत्रित हुआ और बुज़ुर्गों की इस बात से सहमत हुआ कि हमसे ज़रूर कोई भूल हो गई है और हमें अपनी हस्त-रेखाएं वापस लेने के लिए हस्त-रेखाओं के काफिले से क्षमा मागनीं चाहिए |ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति अपनी हस्त-रेखाएं वापस लेने के लिए कुछ भी करने को तत्पर था |शहर के सभी नागरिक सहमति से एक बड़े मैदान में एकत्रित हो गए और सब बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर आसमान में उड़ रही हस्त-रेखाओं के काफिले की ओर मुंह करके खड़े हो गए |
‘हे हमारे भाग्य-विधाता ,हमे क्षमा कर दो,यदि हम से कोई भूल हो गई हो तो’समझदार और बुज़ुर्ग लोगों ने एक स्वर में कहा और हाथ जोड़ कर काफी समय तक वैसे ही खड़े रहे |छोटे बच्चे भी उनकी ओर देखकर हाथ जोड़ कर आसमान की ओर मुंह करके खड़े हो गए |वे कभी अपने बड़ों की तरफ और कभी आसमान में उड़ रही हस्त-रेखाओं की ओर देखते और कभी-कभी हस्त-रेखाओं से रहित अपने हाथों की ओर देख लेते और फिर गंभीर हुई स्थिति को देख खुद भी गंभीर हो जाते |अचानक कुछ देर छाई ख़ामोशी के बाद आसमान से एक आकाशवाणी हुई |
‘ईमानदार और देशभक्त लोगों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है |ध्यानपूर्वक सुनो कि ईमानदार और देशभक्त लोगों की हस्त-रेखाएं वापस आ जाएंगी,लेकिन उनको एक वचन देना होगा कि वे लोग अपने समाज ,अपने देश ,अपनी व्यवस्था को सुचारु ढंग से चलाने के लिए आगे आकर काम करेंगे ,पीछे नहीं हटेंगे |सम्पूर्ण प्रकृति की ओर से बनाई गई इस धरती को आगे आकर संभालेंगे,प्रकृति ने ये धरती सिर्फ बेईमान लोगों के लिए नहीं बनाई’ये कहते ही आकाशवाणी समाप्त हो गई |बहुत सारे लोगों ने देखा कि उनके हाथ की रेखाएं फिर से वापस आ गईं थीं ,परंतु कुछ लोगों की हस्त-रेखाएं वापस आईं ही नहीं|शायद ये वो लोग थे जो उस राज्य पर राज कर रहे थे |
-------राजेश गुप्ता ,सामने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया,तिबड़ी रोड,गुरदासपुर,पंजाब |143521
मोबाइल –9501096001 ,ईमेल –rajeshniti00@gmail॰com
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