Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मातृ भाषा

 

मातृ भाषा

बिठाया सर आंखों पर विदेशी भाषा को,

और राष्ट्र भाषा का किया तिरस्कार,

शान से बोलें टूटी फूटी हिंदी,

और विदेशी भाषा फर्राटेदार,

इसके लिए कुछ आप ज़िम्मेदार, कुछ हम ज़िम्मेदार।

फिरंगी आक्रांताओं ने भारत को झटका दिया,

विदेशी रंगत ने रिश्तों को भी निपटा दिया,

चाची चाचा, बुआ फूफा, मामा मामी, ताया ताई सब पर अंकल आंटी की भरमार,

भाई भी अब ब्रो हो गया,

रिश्तों का हो गया बंटाधार।

इसके लिए कुछ आप ज़िम्मेदार ,कुछ हम ज़िम्मेदार।

आदर सत्कार के मायने बदल गए,

मेहमाननवाजी के दिन अब लद गए,

हाय, हेलो, बाय इतना छा गया,

भूल गए सब नमस्कार।

छोटे बड़ों का करें अनादर ,

भूल बैठे सब शिष्टाचार,

फेसबुक का आया ज़माना,

विलुप्त हो गए चिट्ठी और तार।

इसके लिए कुछ आप ज़िम्मेदार, कुछ हम ज़िम्मेदार।

मैं तो कलम का सिपाही हूं,

मातृ भाषा के अस्तित्व के लिए लड़ता रहूंगा,

अपनी रक्त सियाही से तेरा गुणगान करके, 

अस्थि कलम की मशाल से तेरी राह प्रज्वलित करूंगा,

तेरे लिए लड़ जाऊंगा समस्त संसार से,

चाहे जन्म लेना पड़े बारम्बार।

हिंदी को विश्व भाषा का दर्जा देने हेतु,

आओ प्रण लें अब की बार।

इसके लिए आप हम सब हों तैयार।

राजेश पाल सिंह

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