आशुतोष
दायां नेत्र सूर्य है और बायां नेत्र चंद्रमा,
मस्तक के मध्य दहके अग्नि नेत्र की ऊष्मा ।
त्रिपुंड, चंदन, रुद्राक्ष,भस्म से बदन को सजाया है,
ब्रह्मांड की रचना हेतु डमरू बजाया है।
व्याघ्रचर्म के आसन पर शिव विराजमान हैं,
संसार के कल्याण हेतु शंभू अन्तरध्यान हैं।
पंचभूतों के स्वामी बाबा भूतनाथ हैं,
समस्त प्राणियों की रक्षा करते पशुपतिनाथ हैं।
काशी नगरी को बसाया बाबा विश्वनाथ ने,
रहस्य अमरत्व का गौरी को सुनाया बाबा अमरनाथ ने।
सागर मंथन से निकला विष देव-दानव हुए असहाय,
कालकूट कंठ में धरकर शिवजी नीलकंठ कहलाए।
क्या अहित करेगा उनका ये हलाहल का प्याला,
गले में जिसने सजाई हुई है सर्पों की माला।
अंधक, जालंधर, त्रिपुरासुर का त्रिपुरारी ने संहार किया,
जटाजूट में गंगा धर के पृथ्वी का उद्धार किया।
मार्कंडेय को यमपाश से मुक्त कर, आपने अभय वरदान दिया,
शरभ रूप में अवतरित होकर नरसिंह के क्रोध का निदान किया।
रण में वो रुद्र है, तो शमशान में अघोर है,
कैलाश में गृहस्थ है , तो भक्ति में विभोर है।
काल में वो महाकाल है, रात है वो भोर है,
कभी शांतचित ध्यानमग्न, तो कभी महाप्रलय का शोर है।
नृत्य– संगीत के सम्राट, स्वयं नटराज हैं,
शिव के स्मरण मात्र से ही नष्ट होते पाप हैं।
वो औघड़, अनादि, आदिगुरू, अजेय है,
महाबली, परमकृपालु, भक्तवत्सल, मृत्युंजय है।
पिनाक और त्रिशूलधारी रक्षा भक्तों की करते हैं,
हर याचक की झोली, भोले भंडारी भरते हैं।
देव,दानव, यक्ष, गन्धर्व सभी आपके उपासक हैं,
महादेव भोलेनाथ सब दुखों के नाशक हैं।
वो चंद्रशेखर, अर्धनारीश्वर, ओंकारेश्वर, महेश्वर,
वो सोमनाथ, श्री वैद्यनाथ, केदारनाथ, रामेश्वर।
हे आदिपुरुष, है आदिदेव, हे परम तपस्वी,
आप की कृपा से मूढ़मति भी हो जाते यशस्वी।
भांग, धतूरा, पुष्प, जल से कर लेते संतोष,
बड़े सरल हैं त्रिलोक के स्वामी भगवान आशुतोष।
आप ही भक्ति और मुक्ति के धाम हैं,
महादेव के श्री चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम है।
राजेश पाल सिंह
विज्ञान अध्यापक
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