देश है सर्वोपरि,
गर्व से है नतमस्तक,
इसके समक्ष हर भारती।
हिन्द देश एक वतन,
सभय्ता, परम्परा, नैतिकता,
और संस्कृति का चमन,
यही से हुआ भक्ति और मोक्ष का आगमन।
देव, ईश भी पूजे इसे,
और नर उतारे आरती।
गर्व से है नतमस्तक,
इसके समक्ष हर भारती।
राष्ट्र भक्ति इसके कण कण में भरी,
देश है सर्वोपरि,
देश है सर्वोपरि।
वीर सैनिक, रणबाँकुरे इसके चमकते अलंकार,
खेतों में किसान हल से करते इसका सुन्दर शृंगार।
विद्यालओं में गुरुजन बांटते विद्या रूपी उपहार,
जहा अतिथि का घर आने पर होता आदर सत्कार।
प्रेम, सदभाव के समक्ष,
नफरत, शत्रुता भी हारती,
गर्व से है नतमस्तक,
इसके समक्ष हर भारती।
राग द्वेष को भुला दो,
बात यह लगती खरी,
देश है सर्वोपरि,
देश है सर्वोपरि।
नई बुलंदिओ और उपलब्धियों की,
ओर देश है अग्रसर,
स्वछता होगी गली गली,
इस के लिए कस ली है कमर,
फिर भी कहीं न कहीं हम गए है फिसल,
कहीं तो हुई है चूक,
कहीं तो हुए है विफल,
क्यों प्रदुमन जैसे मासूम को गया,
उसी का स्कूल निगल।
वीर हकीकत राय की धरती पर,
क्यों बाल हिंसा ठहाके मारती,
क्यों बाल अपराध और बाल शोषण,
जैसी बीमारी पाओं पसारती।
शोक और पीड़ा से शर्मसार है हर भारती।
इन नंन्हे फूलो की रक्षा हम सबको है करनी,
हम सबको बनना होगा,
इन फूलों का संत्री।
तभी हो पायेगी विश्व गुरु बनने की आस पूरी।
देश है सर्वोपरि,
देश है सर्वोपरि,
गर्व से है नतमस्तक,
इसके समक्ष हर भारती।
राजेश पाल सिंह ठाकुर
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