माटी भी तो माँ है
माटी भी तो माँ है,
माटी से ही हमारा वजूद है,
माटी से हमारी पहचान है ।
सौंधी- सौंधी खुशबू इससे है आती,
जब मेघ बूंदे इससे टकराती,
धरतीपुत्र इस पर हैं हल चलाते,
बदले में यह सोना उगाती।
लहलाहतीं फसलें इस पर,
इस धरा को चार चाँद लगातीं,
संध्या काल में गोधूलि से,
सुनहरा लगता गाँव है।।
माटी भी तो माँ है,
माटी से हमारी पहचान है ।।
माटी से बनती मूर्ति, गगरिया,
घर , दीपक और खिलौने,
माटी से ही बनते बर्तन,
मिलते धातु, लौह और सोने,
माटी में ही दंगल सजते,
माटी में ही मेले जंचते,
माटी ने ही दिया है सबकुछ,
फिर क्यों यह गुमनाम है।
माटी भी तो माँ है,
इसी से हमारी पहचान है।
माटी करती हमसे प्यार,
कर लेती सब मैला स्वीकार,
विकास के खोखले दावे करके,
हमने किया इसका तिरस्कार,
खनन, पेड़-कटाई करके,
धवस्त किया इसका साज-शृंगार।
माटी है तो हम सब हैं,
हम जीते इसके दम पर हैं,
प्रण लेते हैं हम सब मिलकर,
बचपन में खेले जिसके आंचल पर,
देखभाल करनी है इसकी,
बचाने इसके प्राण हैं।
मृदा-अपरदन , मृदा-प्रदूषण का हो उन्मूलन,
चलाना एक अभियान है।
माटी भी तो माँ है,
इसी से हमारी पहचान है।
राजेश पाल सिंह (विज्ञान अध्यापक )
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