तुम्हे अहसास तो हुआ होगा
नपुंसकता का
जब तुम्हारी आँखे बरसी होगी
क्षत विक्षत लिंग कटे शहीद को देखकर
जब कांपते हांथो से
तुमने छुई होगी
वो ठंडी देह
बर्बरता का अवशेष ।
तुमने धिक्कारा होगा
अपने आप को
जब तुम्हारा ह्रदय जल रहा था
अमिट पीड़ा दे रहे थे
वो फफोले
नमक मिर्च भरे घाव
देखा तुम्हारी
तुच्छ राजनीति का परिणाम
तुष्टिकरण की नीतियों का अवशेष
तब तुम्हे याद आए होगे
वो असमिया छात्र
जो चेता रहे थे
ये आग
चिल्ला रहे थे "विदेशी भागो"
ओट रहे थे गोलिया छाती पर
और मैं?
मैं तो पुरुषत्व विहीन हूँ
जो सोचता रहता हूँ
ऐसे वक्त में भी तुम्हारा अहसास..
Rajesh sharma
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