Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ऐ दिले नादाँ तुझे समझाउं कैसे

 

 

ऐ दिले नादाँ तुझे समझाउं कैसे
खो गया है यार मेरा सपनों से
रात दिन ये नज़रें तलाशती हैं
कैसे लौटाउँ फिर उसे सपनों मे

 

 

किसे सुनायें जाके दास्ताँ हम अपनी
सब ओर नज़र आते हैं लोग बहरे
ओढ़े हुये नक़ाब चेहरों पे चलते हैं
एक चेहरे पे कई चेहरे नज़र आते हैं

 

 

दर्द छुपाये हुये गुज़रते हैं गलियों से
ख़ुशी की नक़ाब लगाके अपने चेहरे पे
डरते हैं आजकल अपने ही साये से
छिपाते हैं ख़ुद को अब उजालों से
रातों को हम रोशनी से छिपते हैं

 

 

हर दर्द हर मर्ज़ को छुपाते हैं तुझसे
न हो तुम परेशाँ इसका ख़याल रखते है
तेरे सपनों में जाके तुझे तकलीफ़ न दें
इसीलिये अपने सपनों में तुम्हें ढूँढते हैं।

 

 

Rajesh Singh

 

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