-राजकुमार गौतम
सुनो दोस्त!
ऐसे नहीं उतरती नाव पानी में
जैसे तुमने इस चित्र में दिखाया है .
नाव उतारने के लिए ज़रूरी हैं
कुछ मज़बूत मल्लाह
जिनके हाथों की पतवार
पानी की तहों को चीरकर
अपना रास्ता आसान करती है
और
पतवार ऐसे नहीं तैरते पानी पर मेरे दोस्त
जैसे तुमने इस चित्र में दिखाया है.
कि नाव इस बंजर किनारे से
उस पार की उपज को पाने का
एक श्रमपूर्ण माध्यम है
जिन किनारों के बीच
धंसी हैं अनन्त दलदली गहराई
और जहाँ
कसमसाते जीव नाव की सुगंध को
हवा की तरह भोगते हैं
नाव का इस दूरी को पार करना
पुल की तरह आसान नहीं है मेरे दोस्त
जैसे तुमने इस चित्र में दिखाया है.
कि नाव पानी में सूर्योदय के बाद नहीं
पहले उतारी जाती है
और फिर भी
दिशाभ्र्म का उसे कोई डर नहीं होता
वह सूर्योदय की तरफ नहीं
उस दिशा की तरफ बढ़ती है
जहां रोशनी होती है, स्थायी रोशनी
नाव अनन्त यात्रा का
एक पड़ाव होता है;
मस्तूल हारकर लिपटते नहीं हैं
न मल्लाह थककर निढाल होते हैं , मेरे दोस्त
जैसे तुमने इस चित्र में दिखाया है!
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