Rajkumar R Tiwari
समा जाते है लोग दिल में ऐतबार बनकर.
फिर लूट लेते है ख़ज़ाना पहरेदार बनकर,
यकीं करता है इन्सान जिनपे हद से ज्यादा,
डुबों देते है वो ही कश्ती मझदार बनकर,
रिश्तों की अहमियत खूब समझती है दुनिया,
पर लालच आ जाती है बिच में दिवार बनकर.
दौरे-मुश्किल में वसूलों पे चलते है बहूत लोग,
पर भूला देते है वसूलों को मालदार बनकर.
झूठ बिक जाती है पलभर में हजारों के बिच,
सच रह जाता है तन्हा गुनाहगार बनकर,
इंसानियत हो गयी हैं गूंगी,मजहब के नारों से,
लोग,खुदा को बाटते है,धर्म का ठेकेदार बनकर,
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