"अरेंज्ड मैरिज और लव मैरिज "में क्या सही है और आपके उस बारे में क्या विचार हैं
मेरे विचार
अरेंज्ड मैरिज
सदियों से विवाह को सामाजिक संस्था के रूप में देखा और माना गया है |
उसपर भारतीय संस्कृति में अरेंज्ड मैरिज को ज्यादा मान्यता दी जाती है |
इसके भी कई कारण हैं | सबसे पहला इस विवाह से परिवार में आये उतार
-चड़ाव को पारिवारिक जिम्मेवारी और बड़ों की सहमती मान कर हर फैसले को
स्वीकार कर लिया जाता है | दूसरी अहम् बात इसमें लड़की की भावनाओं और
विचारों की स्वतन्त्रता नगण्य ही रहती है ,क्योंकि उसे बचपन से ही पति
परमेश्वर का पाठ पढ़ा दिया जाता है , जिससे अपने वैवाहिक ज़िन्दगी में अपनी
ख़ुशी को नज़रंदाज़ कर, अपने से जुड़े लोगों की ख़ुशी को तवज्ज़ो देना ही
सिखाया जाता है | मां हर सीख पर लड़की को यही समझा कर भेजती है अब दोनों
कुल की मर्यादा तुम्हारे हाथों है , इसे बना कर रखना , और लड़की
इच्छा,इनिच्छा उसे निभाती है | अरेंज्ड मैरिज में लड़की के इच्छा के
अनुसार लड़के का परिवार न चल कर , परिवार और पति के अनुसार लड़की को चलना
पड़ता है , आज भी कई अरेंज्ड मैरिज के ऐसे उदहारण हैं जहाँ सिर्फ उम्र से
ही बेमेल जोड़ा नहीं है बल्कि सोच से भी बेमेल है |एक की सोच दाहिने
जाती है तो दूसरी की सोच बाएं | फिर भी साथ निभाने को मजबुर, साथ जी
रहे हैं | कारण , एक ही साथ कई लोगों की ज़िन्दगी जुड़ी है, दो परिवार की
मर्यादा , इसमें यदि सबसे ज्यादा नुकसान कहें या अपेक्षित होना तो लड़की
होती है | यदि लड़के के मनोनुकूल लड़की न हुई तो भी सुनना लड़की को पड़ता
है, माँ - बाप के मन लायक दहेज़ न लायी तो भी लड़की ही सुनती है | हर
तरह से आज भी कितने ऐसे अरेंज्ड मैरिज से बने रिश्ते को लड़की
ही अपनी समझदारी से चलाती है | ज्यादातर पुरुष का अहम आड़े आ जाता है |
नारी फिर भी कभी परिवार,कभी बच्चे, कभी पति के कारण सिथिति के अहसज
होते हुए भी खुद को तैयार रखती है ,और अपनी सहनशीलता का परिचय देती है |
कई माता- पिता विवाह तो कर देते हैं , पर आर्थिक मौकों पर सहायता नहीं कर
पाते , इसमें भी आपसी समझदारी से विवाह को बना कर रखने की कोशिश लड़की की होती है
| कहते हैं अरेंज्ड मैरिज में विवाह के बाद प्यार पनपता है ,विवाह के
बाद कई वर्ष लग जाते हैं एक दुसरे को समझने में , सही मायने में हम कहें
तो बस यही निष्कर्ष निकलता है कि ऐसे विवाह में सिर्फ और सिर्फ यदि
अपने भावनाओं की बलि देती है तो वो लड़की | क्योंकि सौ में से पाँच
लड़के ही विवाह के बाद पत्नी के इच्छा से चलते हैं | तो यहाँ प्यार वाली
बात कहाँ ? प्यार तो बराबरी की बात करता है न की अधिकार की ? और हमारे
समाज में अरेंज्ड मैरिज कर लायी गयी लड़की एक बहू के रूप में , पत्नी के
रूप में , कितनी और कहाँ तक अपने आपको अपने अनुसार ससुराल में रख पाती है
? वो रहती नहीं, ढलती है उस माहौल में | ज्यादा नुकसान हर कीमत पर लड़की को
ही होता है ,लड़के को कम , क्योंकि लड़की के मनोनुकुल लड़का नहीं मिला तो
कितनी लड़कियों को आपने सुना है दूसरी विवाह करते ? पर लड़के के मनोनुकुल
लड़की न हुई तो ऐसे कई उदाहरण हैं लड़के के दूसरी विवाह के | और भी कई
तरह की सामजिक आर्थिक उतार - चड़ाव को लेकर अरेंज्ड मैरिज में आसानी से लडके
अपने माता पिता पर दोषारोपण करते हैं | आपकी वजह से ऐसा हुआ ,वैसा हुआ
इत्यादि | पर बहुत कम - लड़कियां ऐसा कर पाती हैं | कुल मिला कर ये कह
सकते हैं की सदियों से बनी इस सोंच को ,और चली आ रही परम्परा में अरेंज्ड
मैरिज एक ऐसी संस्था है जिसमे दो लोगों के जुड़ने से दो परिवारों का भी
बंधन हो जाता है , जहाँ सोंच और जिम्मेवारी भी दोगुनी हो जाती है जिसके
निष्कर्ष में बस यही आता है -- जो कड़ी जुड़ गयी है उसे हर हाल में जुड़े
रहना ही समाज और परिवार के हित में है | और इसी सोच के साथ इसे निभाने
की कोशिश की जाती है ,बिना किसी स्वार्थ, और अहम् के टकराव के बिना | एक
नारी शक्ति ही इसे ज्यादा ठोस बना पाती है |
लव मैरिज
लव मैरिज , यानि प्रेम विवाह | कहते हैं प्रेम करने की कोई उम्र नहीं
होती | पर विवाह एक निश्चित उम्र में ही होती है |और जहाँ तक प्रेम विवाह
का सम्बन्ध है वो यहाँ भी निर्भर करता है आपसी सोच और समझ पर | पंद्रह
सोलह वर्ष की उम्र का प्यार कच्चा हो सकता है , जिसमे प्यार एक नज़र वाला
मायने रखता हो | जिसमे लड़के -लड़की को खूबसूरती पर प्यार आ जाये, उसके
फ़िल्मी अंदाज़ पर प्यार आ जाये |पर विवाह से पूर्व हर लड़का लड़की अपने भावी
जीवनसाथी में कुछ न कुछ गुण अवश्य चाहते हैं , और प्रेम में भी दो लोगों
की आपसी सोचों का मिलना ही एक दुसरे की ओर खींचता है नज़दीकी लाता है |
जिसमे समझ काफी मायने रखती है | रही बात आर्थिक रूप से मजबूती का तो वो
भी देख भाल कर ही विवाह करती है जोड़ी | आर्थिक संकट से तो कई - कई बार
अरेंज्ड मैरिज से हुए विवाहित जोड़े को भी गुजरना पड़ता है | उतार चड़ाव तो हर मोड़
पर आते हैं | आज के पीढ़ी में इतनी समझ तो जरुर है क्या सही है क्या गलत है | पर
सबसे अहम् बात है आपसी समझ की कोई भी रिश्ता आपसी समझ से ही टिकती है |
और जहाँ प्रेम होगा वो झुकेगा जरुर | कभी दाहिने पल्ले कभी बाएं | कभी
लड़के की समझ ,कभी लड़की की समझ , आपसी सहमती | यहाँ एक बात कहना जरुरी
समझती हूँ , कई -कई बार माता पिता की पसंद भी बच्चों का हित नहीं कर पाती
,उनकी ओर से लिया गया फैसला भी, उठाया गया अच्छा कदम भी बच्चों के लिए
हानिकर हो जाता है | और कई बार बच्चों की पसंद मिसाल बन जाती है | अहम
बात ये है अभिभावक की इच्छा होती है बच्चों का जीवनसाथी का चुनाव उनके
द्वारा हो,उनकी इच्छानुसार बच्चे रहें , और बच्चों की इच्छा होती है
जीवन हमें गुजारना हम देखें , यदि विचारों का टकराव न हो तो कोई भी
रिश्ता आसानी से फलता फूलता है | प्रेम विवाह की सफलता का सारा श्रेय
लड़के - लड़की की आपसी समझदारी को दी जाती है | यदि टूट गया तो कहा जाता है
प्रेम विवाह था तभी नहीं टिक पाया | पर यहाँ एक बात भूल रहे हैं , वो है
विचारों की समझ का , यदि आपसी समझ हो तो प्रेम विवाह उपयुक्त विवाह है ,
और इसके टिकने की सम्भावना भी अरेंज्ड मैरिज से ज्यादा होती है |
क्योंकि प्रेम विवाह में लड़की के विचारों और भावनाओं का हनन नहीं होता
,जबकि अरेंज्ड मैरिज में उसके भावनाओं का निर्वाह न के बराबर होती है |
प्रेम विवाह को यदि प्रश्रय दें अभिभावक तो आनेवाले समय में दहेज़ प्रथा
जातिवाद, नारी के सामाजिक स्तर में सुधार लाया जा सकता है | वो तो आपसी
समझ है , नहीं तो कई अरेंज्ड मैरिज के जोड़े हैं जिनका जीवन नर्क है एक छत
के नीचे तो हैं पर अजनबियों की तरह |
" रजनी मल्होत्रा नैय्यर "
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