अनंत में
कोई विहग
ऊँची चट्टानों को लाँघते हुए
उड़ रहा है।
शरीर के हर कोने से ऊर्जा एकत्रित करे
कोई विहग
उड़ा जा रहा है
आत्मा में ग्लानि और चेहरे में पश्चाताप
का बोझ लिए
थके-हारे अंगों को समेटते हुए
चोंच में पकड़े आखिरी तिनके को
गिरने से बचाए
कोई विहग
अनंत में
निरंतर उड़ा जा रहा है।
Rakesh Joshi
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