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Dr. Srimati Tara Singh
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लौटते अल्फाज़

 

लौटते अल्फाज़
ठहर जा ना
घड़ी दो घड़ी के लिए
इसी क्षण में
भीतर उमड़ रहे कम्पन को
थाम दे।
लौटते अल्फाज़
इसी फर्श पर
धैर्य दे, आस्था दे,
मंत्र दे, दर्शन दे,
खुली उम्मीद
गारन्टी दे।
लौटते अल्फाज़
सुन रहा है न तू।
पुकार ही है ये
न शब्द है, न बाण है
दिलों की रूह से
पुकार है,
त्याग दे, त्याग दे
क्रूर पन त्याग दे।
लौटते अल्फाज़
इस दफा
समा जा ना
भीतर हर ऊतक में
फैल जा ना अनगिनत कोशिकाओं में
बस इसी प्रण को
जीवन की दरिया में उतार दे

 

 

प्यार ले, प्यार दे
लौटते अल्फाज़
सुन रहा है न तू।
बिखर रहे रिश्तों की
दरार को संवार दे।
लौटते अल्फाज़
अगली दफा
न निकले आॅखों से
कोई अग्नि मिसाइल
और न बरसे
शब्दनुमा ‘लिटिल ब्वाॅय’
लौटते अल्फाज़
समझ रहा है न तू।

 

 

 

Rakesh Joshi

 

 

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