Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वह चला….

 

शब्दों को ओढ़ कर
वह चला दूर उस दुनिया में
नहा गया ग़मों के रस से
पी चुका अंगारे भरे दुःखों का धुआँ
थाम दिया भीŸार का सारा कम्पन
उधेड़ दी सारी उलझने
गिरते-गिरते, मरते-मरते
विनाश को भी सँवार कर
वह चला दूर उस दुनिया में।

 

 

 

Rakesh Joshi

 

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