Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इन्द्रधनुषी तितलियों के पंख मेरे पास हैं

 

 

चाँद-तारे तोड़ लाना अपनी फितरत में नहीं,
उँगलियों से ताज गढ़ना अपनी कूबत में नहीं,
एक टुकड़ा आसमां और एक प्यारी सी सुबह,
इन्द्रधनुषी तितलियों के पंख मेरे पास हैं।

 

 

एक अनजानी गली में पुल बनाता आहटों के,
ज़िंदगी के बांसुरी में गीत भरता चाहतों के,
हर क़दम आवाज बनकर छल रहे हैं शाम तक,
तेरे घर से लौटती तनहाइयाँ अब साथ हैं।
इन्द्रधनुषी तितलियों के पंख मेरे पास हैं।

 

 

नदी पार सन्नाटा रेतमहल है अपना,
नींद में उतरता है सपना ही सपना,
आयेंगे लौट वे, हवायें ये कहती हैं,
आँगन और देहरी को अब भी विश्वास है।
इन्द्रधनुषी तितलियों के पंख मेरे पास हैं।

 

 

रात-रात जाग-जाग खोजा है उनको,
फैला है आसमां खबर भेजूं किसको,
जागते सितारों ने भेजा आमन्त्रण है,
रिश्तों के आँगन में पतझड़ का राज है।
इन्द्रधनुषी तितलियों के पंख मेरे पास हैं।

 

 

सुबह खिले फूलों पर नाम तेरा लिख दिया,
परिचय की गंध को चौखट पे टांग दिया,
दिन के सिरहाने पर कलप रही प्यास है
ताल-ताल पुरवैया मन तो उदास है।
इन्द्रधनुषी तितलियों के पंख मेरे पास हैं।

 

 

 

रामानुज मिश्र

 

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