Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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घनाक्षरी -छंद

 

सावन- भादों
१. सावन की हरियाली, आये जब मतवाली,
चले मेरे संग – संग, जहाँ भी हम जाएँ |
तरसा हूँ बूँद – बूँद, नयनो को मूँद – मूँद,
जले जब मन – अग्नि, जलें जहाँ भी जाएँ |
लायें सावन अपनी, घन – घोर घटायें ये,
घन – घनन – घनन, बरसें और जाएँ |
पानी की प्यासी धरती, तन-मन खग-मृग,
व्याकुल संग – गौतम, जरिकें रहि जाएँ |
२.
सावन आय हर्षाय , हरियाली- तीज लाय,
बेटीं – बाबुल के घर, पर्व – मनाने जाएँ |
रंग अनेकों धागों के, रिश्तों के धागे राखी,
बहना – तिलक लगा, राखी- बाँधन जाएँ |
चौक- पुराएँ आँगन, हर्षे तब सावन,
भईया- बहिनों संग, अपनापन पाएँ |
गीत-मल्हारों की धुनि, बहना संग गाकर,
झूला -झुलायें “गौतम“, सावन को मनाएं |
३. सावन के बाद भादों, भादों की कुरूप- धूप,
रोग – भोग – योग सोच, संयम – सुधारिए |
रात काली – अमावस, डरावे जब यामिनी,
थर – थर कांपे देह, देव को पुकारिए |
जले अग्नि रात – दिन, भाप- ताप श्राप देय,
तरु- छाँव में विश्राम, काम को बिसारिए |
गौतम संग – अनंग, सावन के नाग – देव,
नागदेव – को पुकारि, दूध को पिलाइए |

 

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