Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कभी हमारे- कभी तुम्हारे द्वारे.रामबाबू गौतम

 

घिरि आयें जब बादर कारे, हम हिम्मत ना हारें,
सुख- दुःख की बदरी है ये बरसेगी,
कभी हमारे- कभी तुम्हारे द्वारे |
घिरि आयें जब बादर कारे—–
चौमांसे की ये पुरवैइया हमको ना भाये,
घन-वन में नांच मयूरी कितना शोर मचाये,
एक पल सुधि भूलूँ- एक पल याद ये आये,
बरसे जब घनघोर बदरिया पूरब से आये,
भीगि गयीं मन की सब यादें,
कभी स्वप्न में और कभी पुरवईया के सहारे ||
घिरि आयें जब बादर कारे—–
बादर निश-दिन की बरसात न बनि जायें,
बरसें घन-घोर ये कि सुख दे नहिं पायें,
नांचें मन के मोर पर दिल ये अकुलाये,
दुखों के घाव ना बने बरसात थम जाये,
ऐसी बरसात को मैं दूं निमंत्रण,
जो बरसे घर हमारे और बरसे घर तुम्हारे ||
घिरि आयें जब बादर कारे—–
मेरी आँखों में बरसे आँसूं जब - जब थम जायें,
दुःख की स्मृतियों में ये अर्धविराम लगा जायें,
पक्षपाती बादल कैसे बरसें जो रेगिस्तान बनायें,
कैसे हैं भगवान? हमको गरीब-अमीर बनायें,
ढूंढूं मैं उन निश्छल-विश्वासों को जो,
आ ठहरें घर हमारे और आ ठहरें घर तुम्हारे ||
घिरि आयें जब बादर कारे—–
भावुक जब ये सुख के बादल मेरी गली- 2 बरसे,
दुःख की गलियां सूनी-२ गली-२ जो बादल बरसे,
इन आंसू से नाता कैसा आंचल में छाये ना बरसे,
सौगंध हमारी खाकर जाने किन विश्वासों में बरसे,
बिन बरसे बसते कौन देश में जाकर?,
देते सन्देश घर हमारे और देते सन्देश घर तुम्हारे ||
घिरि आयें जब बादर कारे—–
अधरों में छलका करते मदिरा के सौन्दर्य – घनेरे,
लहरें उठ-२ कर गिरतीं बिन सुख- मानस में मेरे,
बाजी हार रहा है ये जीवन -जीवित है सन्देश सहारे,
दो बूँद स्वांति के बादल जीवन प्यासा बूँद सहारे,
जय- पराजय छू- छूकर देती है पीड़ा,
जीती अभिलाषाएं लौटें घर हमारे और लौटें घर तुम्हारे ||
घिरि आयें जब बादर कारे, हम हिम्मत ना हारें —


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