Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मन में दृढ विश्वाश लिए

 

जीवन की इक पतवार लिए, खेता हूँ औरों का अनुराग लिए,
मन में दृढ विश्वाश लिए, बढ़ता हूँ करुणा का राग लिए |

मेरी उम्र- तेरी उम्र से ज्यादा हो नहीं सकती,
मैं सौऊँ- निश्चिन्त मगर तू सो नहीं सकती |
दर्द आत्म-साध करूँ पीड़ा मिट नहीं सकती,
छाया-अंतस की-माँ अकेला छोड़ नहीं सकती |
जिऊँ माँ जीवन बिन तेरे, कुछ कर सका ना तेरे लिए ||
मन में दृढ विश्वाश लिए -----

पानी संगम करे हवा संगम कर नहीं सकती,
धूप में खिलके वह छाँव में मर नहीं सकती |
आग चिलमिल बन तेरे बिन बढ़ नहीं सकती,
सांस- धडकन बंद कमरे में ये रह नहीं सकती |
संग- स्वांस में बहूँ, जीवन ज्योति जगाने के लिए ||
मन में दृढ विश्वाश लिए -----

जलाऊँ- ये दीप- कितने ही रोशनी हो नहीं सकती,
निकलते अंकुरों का जीवन कम कर नहीं सकती |
तडप प्यास बनके आये वेदना मिटा नहीं सकती,
तपूँ कितना ही- सूरज बिन सुबह हो नहीं सकती |
जुगनू संग चलूँ, चाहिए किरण आगे बढ़ने के लिए ||
मन में दृढ विश्वाश लिए -----

बिन तेरे प्यासी धरती ये प्यासी रह नहीं सकती,
तन- रक्त की धार- बिन धडकन बह नहीं सकती |
फंसी भंवर में पतवार सहज निकल नहीं सकती,
बुझाऊँ प्यास पानी बिन प्यास बुझ नहीं सकती |
बहूँ कैसे मांटी- तन में तेरे, अवरोधों का हूँ प्रवाह लिए? ||
मन में दृढ विश्वाश लिए -----
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राम- गौतम, न्यू जर्सी ( अमेरिका)
अगस्त ०१, २०१०

 

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